इस ब्रम्हाण्ड में जिनकी पूजा-अर्चना व यज्ञ, गंधर्व, किन्नर व देवता भी करते हैं, वो देवों के देव महादेव हैं। आप ही रूद्र रूप में प्रत्येक देवता में वास करते हैं। इनका स्वरूप ही इनकी दिव्यता दर्शाता है।
आपकी पूजा-विधि इतनी सरल है कि कहीं भी आसानी से की जा सकती है।आप किसी पात्र से जल द्वारा उपलब्ध फूल ,पत्री के अभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए आप को भोले बाबा के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
शिव की आराधना व अभिषेक यदि किसी कामना के लिए किया जाए तो निम्नलिखित पदार्थों से अभिषेक करें, कार्य अवश्य पूर्ण होता है। ऐसा विश्वास किया जाता है।
किन चीजों से करें अभिषेक?
व
प्राप्त फल
- गंगाजल मिले जल से अभिषेक-– ज्वर दूर होता है।
- दूध से अभिषेक– लक्ष्मी की कृपा व संतान प्राप्ति
- दही से अभिषेक– भवन, वाहन का सुख
- गन्ने के रस से अभिषेक- लक्ष्मी जी की कृपा होती है।
- शहद व घी से अभिषेक- धन वृद्धि होती है।
- इत्र मिले जल से अभिषेक- बीमारी दूर होती है।
- घी की धारा से अभिषेक सहस्त्र नाम का जप करते हुए अभिषेक- वंश वृद्धि होती है।
- तीर्थ के जल से अभिषेक- मोक्ष प्राप्ति होती है।
- दुग्ध मिले जल से अभिषेक- प्रमेय रोग का नाश होता है।
- शक्कर मिले जल से अभिषेक- जड़ बुद्धि वाला भी विद्वान होता है।
- सरसों के तेल से अभिषेक- शत्रु पराजित होता है।
- शहद से अभिषेक- तपेदिक रोग का नाश होता है।
- गौ दुग्ध (गाय का दूध) व शहद से अभिषेक- आरोग्यता प्राप्त होती है।
मनुष्य विभिन्न समस्याओं व रोगों से परेशान रहता है। माना जाता है कि यदि शिव का रूद्राभिषेक घर या मन्दिर के प्रांगण में करा दिया जाये तो जीवन मे अनुकूलता आती है। रूद्राभिषेक कब और कैसे करायें? आगे इसका पूर्ण विवरण दिया गया है।
कहा जाता है कि ईश्वर की प्रार्थना कहीं भी, कभी भी की जा सकती है। परंतु ऐसी मान्यता है कि यदि विशेष समय पर पूजा-अर्चना की जाए तो उसका विशिष्ट लाभ मिलता है।
रूद्राभिषेक की महत्ता
कब करें रुद्राभिषेक?
रूद्राभिषेक की महत्ता श्रावण मास, प्रदोष, सोमवार को विशेष है। बाकी समय में रूद्राभिषेक किया जाये तो इसकी गणना कर लेनी चाहिए।
जिस दिन हम रूद्राभिषेक का आयोजन कर रहे है, उस दिन शिव का वास कहाँ है, यह जानना आवश्यक है।
इसे उदाहरण से समझा जा सकता है कि हम यदि निद्रा या अप्रसन्न मन से हैं तो ऐसे समय में किसी प्रिय का आगमन भी उचित नही लगता है।
इसी प्रकार रूद्राभिषेक का आयोजन करते समय शिव के वास की गणना करना आवश्यक है।
विशेष– यदि आप ज्योतिर्लिग- क्षेत्र में हैं, तो शिव के वास का विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
देव ऋषि नारद जी की पद्धति से गणनानुसार
रूद्राभिषेक- शुक्ल पक्ष की द्वितीय (2), पंचमी (5), षष्ठी (6), नवमी (9), द्वादशी (12), त्रयोदशी(13 ) शिव-वास अनुकूल एवम् अतिशीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता है।
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (15 + 1), चतुर्थी (15 + 4), पंचमी (15 + 5), अष्टमी (15 + 8) , एकादशी (15 + 11) , द्वादशी (15 + 12) , अमावस्या (15 + 15) को रूद्राभिषेक शुभ फलदायक माना जाता है।
कैसे करें गणना?
जिस दिन रूद्राभिषेक करना है, उस दिन की तात्कालिक तिथि की संख्या को दो गुना कर के गुणन फल में पाँच जोड़ने पर आए फल में सात का भाग देने पर शेष बचे अंक से शिव के वास का विचार करते हैं।
ध्यान रखें शिव वास की गणना में तिथियों के क्रमांक का विचार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (1) , तिथि से पूर्णिमा (15) तक के क्रमांक 1 से 15 होंगे। तदोपरांत कृष्ण पक्ष की तिथि का क्रम आने से कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक के क्रमांक सोलह(16) से तीस (30) तक होंगे।
उदाहरण-1
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी(13) को शिव वास की स्थिति जानना है।
नियम
13 ✖️ 2 ➡️ 26 ➕ 5 ➡️ 31 ➗ 7 ➡️ 3 शेष
1) शेष फल = 1 – भोले नाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में बैठे है। अति फल दायक भोग , काम मोक्ष दोनों प्राप्त होंगे।।
2) शेष फल = 2 – भोलेनाथ माता पार्वती के साथ अपने भक्तों के हितार्थ चिंतन कर रहे है।सुख संपत्ति का वरदान प्राप्त होगा।
3) शेष फल = 3 – शिवजी नंदी पर आरूण हो कर लोक कल्याण हेतु भ्रमण पर है। मनोकामना पूर्ण होती है।
4) शेष फल = 4 – महादेव देवताओं के साथ सभा में हैं। ऐसे में ध्यान भंग होता है। शोक संताप प्राप्त होगा।
5) शेष फल = 5 – भोलेनाथ भक्तों के पापों का भ्रमण करते हुए उनका पातक रूपी विष पी रहे हैं। अनुष्ठान पीड़ा दायक है।।
6) शेष फल = 6 – भोलेनाथ ताण्डव नृत्य करते हुए क्रीड़ारत है। ऐसी अवस्था में आनंद में विघ्न उपस्थित करने के कारण साधक को परिवार सहित कष्ट भोगना पड़ता है।
7) शेष फल = 0 – भगवान भोलेनाथ के महाकाल के रूप में शमशान में साधनारत होने के कारण साधना को खण्डित करना महाविपत्ति कारक एवं मरणतुल्य कष्टप्रद होगा।
उदाहरण-2
कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से गणना
अमावस्या 30 ✖️ 2 ➡️ 60 ➕ 5 ➡️ 65 ➗ 7 ➡️ 2 शेष
फल अनुकूल है। इसी प्रकार बाकी तिथियों की गणना करके ऊपर दिए शेष फल के अनुसार रूद्राभिषेक का आयोजन करें।
विशेष –
- मान्यता है कि सोमवार को बेल पत्र नही तोड़ना चाहिए।
- बेल पत्र को माता पार्वती ने अपने स्तन से शिव को प्रसन्न करने के लिए उत्पन्न किया था।
- पार्थवेशर (मिट्टी के द्वारा बनाये गए शिवलिंग) के रूद्राभिषेक के समय ध्यान रखना चाहिए कि ये अभिषेक के द्वारा खण्डित न हों।
अभिषेक प्रिय है
- शिव को – शृंगी से (जल या दुग्ध मिश्रित जल से)
- विष्णु को – शंख से (जल या दुग्ध मिश्रित जल से)
- श्री गणेश को – ताम्र पात्र से (जल से)
- जगदम्बिका को – स्वर्ण की कोई भी वस्तु डालकर, उस जल से (जल या दुग्ध मिश्रित जल से)
नव ग्रहों के प्रतिनिधि वृक्ष
- बृहस्पति का पीपल ,
- शुक्र का गूलर ,
- शनि का शमी ,
- चंद्रमा का ढाक,
- मंगल का खैर ,
- बुद्ध का अपामार्ग,
- राहू का दूब,
- केतु का कुश। ।।
संकलन: सतेन्द्र कुमार चतुर्वेदी, कानपुर