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  • स्वास्तिक
    स्वास्तिक सदा से ही शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में स्वास्तिक का अर्थ है शुभ होना। “स्व” का अर्थ है शुभ व “अस” का अर्थ है होना अर्थात शुभ होना। स्वास्तिक केवल एक चिह्न ही नहीं है वरन हमारी शक्ति और विश्वास का नाम है। यह हमारे मांगल्य का प्रतीक है। स्वास्तिक दो प्रकार के माने गए हैं। सकारात्मक नकारात्मक सकारात्मक स्वास्तिक: हमारे पूजा विधान में हर मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम लगाए जाते हैं। यह हल्दी, रोली तथा सिंदूर से …
  • स्वास्तिक: शुभकर्ता, मंगलप्रतीक
    स्वास्तिक का महत्व- स्वास्तिक का चिन्ह हम अपने जीवन में बचपन से देखते आ रहे हैं। किसी भी शुभ कार्य में इसे अवश्य बनाया जाता है। हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी इसका महत्व है तथा प्रयोग होता है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह ही माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले इसको बनाने से कार्य मंगलकारी तथा संपूर्ण होता है। स्वास्तिक का चिन्ह सौभाग्य का प्रतीक है …
  • एकादशी
    🚩एकादशी व्रत का महत्व🚩 हमारी भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस व्रत की की हमारे हिंदू धर्म में बड़ी महत्ता है। यही कारण है हिंदू धर्मावलम्बी बड़ी श्रद्धा और निष्ठा के साथ एकादशी का व्रत करते हैं। एकादशी देवी थीं जो भगवान विष्णु के द्वारा उत्पन्न की गई थीं। भगवान विष्णु के प्रकट करने के कारण ही एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। 🚩एकादशी व्रत क्या है🚩 एक ही दशा में …
  • श्राद्ध – विस्तृत जानकारी [महत्व, समय, विधि]-
    श्राद्ध की महत्ता हिंदू धर्म में वेदों अनुसार मनुष्य मृत्यु-उपरांत यमलोक में, मृत्युलोक में पुनर्जन्म होने तक वास करता है और यह प्रवास उसके द्वारा किए गए सत्कर्म-दुष्कर्म पर निर्भर करता है। इस प्रवास के समय धर्मानुसार वर्ष में भादों मास में 15 दिन के लिए यमराज मृत आत्मा को अपने बंधन से मुक्त करते हैं और वह आत्मा अपेक्षा करती है कि उसके परिजन उसको अन्न-जल समर्पित करेंगे। यह सब हमारी मान्यताओं व उनके प्रति श्रद्धा-भाव के अंतर्गत वेद पुराण में चर्चित है। …
  • गणेश चतुर्थी – गणपति स्थापना नियम, भोग विधि व विसर्जन
    गणेश चतुर्थी गणेश चतुर्थी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो सम्पूर्ण भारत में विशेषतः महाराष्ट्र व गुजरात में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भारत में ही नहीं अपितु विश्व के हर कोने में श्रद्धालु गणेश जी का स्वागत व उनकी श्रद्धापूर्वक स्थापना करते हैं, पूजन करते हैं व धूमधाम से उनका विसर्जन करते हैं। गणपति की शारीरिक संरचना का अर्थ गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी का नाम हिंदू शास्त्र के अनुसार किसी भी कार्य के लिए …
  • रूद्राभिषेक
    इस ब्रम्हाण्ड में जिनकी पूजा-अर्चना व यज्ञ, गंधर्व, किन्नर व देवता भी करते हैं, वो देवों के देव महादेव हैं। आप ही रूद्र रूप में प्रत्येक देवता में वास करते हैं। इनका स्वरूप ही इनकी दिव्यता दर्शाता है। आपकी पूजा-विधि इतनी सरल है कि कहीं भी आसानी से की जा सकती है।आप किसी पात्र से जल द्वारा उपलब्ध फूल ,पत्री के अभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए आप को भोले बाबा के नाम से भी संबोधित किया जाता है। शिव की आराधना व …
  • हर-छठ मैया की पूजा में कही जाने वाली कहानियाँ
    हरछठ मैया की पूजा करते समय निम्न कहानियाँ कहने की परम्परा है। पहली कहानी एक राजा थे। उनके सात रानी, सात बहुएँ व सात बेटे थे। उन्होंने ताल (तालाब) खुदवाया। ताल में पानी नहीं आया। उन्होंने बहुत प्रयत्न करके देखे, कि इसमें पानी क्यों नहीं आया। उन्होंने पंच से पूछी तो वे बोले कि इसमें नाती की बलि चढ़ाओ तो पानी आएगा। सास बड़ी बहू के पास गई कि तुमसे एक चीज माँग रहे हैं। वह बोली बोलिए, तो सास ने कहा कि अपना …
  • अर्धनारीश्वर की उपासना तो किन्नरों की उपेक्षा क्यों ?
    हमारा समाज कुछ संकीर्ण विचार-धाराओं को लेकर चलता है, परंतु अब काफी हद तक संकीर्ण सोच बदलती जा रही है। किन्नर समाज- पूर्णरूपेण हमारा समाज अपना नहीं सका है यह एक बहुत ही संवेदनशील विषय व सोच है। यद्यपि 15 अप्रैल 2014 में भारत सरकार ने इनको थर्ड जेंडर की मान्यता दी है, किन्नर समाज की शबनम मौसी जब पहली विधायक बनीँ तब निश्चित ही किन्नर समाज में ख़ुशी की लहर आई होगी। रामायण और महाभारत के पन्ने जब हम पलटते हैं तो हमें …
  • हमारी कुछ प्रथाएं और उनकी तर्कसम्मतता : आज के संदर्भ में
    स्वच्छता के जो मापदण्ड मैने अपने बचपन में देखे,उनको क्या नाम दूँ, समझ नहीं पाती हूँ… छुआछूत, कुरीतियां या रहने का उचित ढंग … स्वच्छता हम लोगों के रहन-सहन में रची- बसी थी । सभी परिवारों के रहन-सहन का तौर – तरीका वही था। सभी स्वच्छता को अपनाकर अपनी सुरक्षा करते थे। किसी को छूना नहीं, यहाँ तक कि स्नान के बाद अपने स्वयं के बच्चों से भी दूरी बनाकर रहना कि कहीं कोई छू न ले लेना वरना पुनः स्नान करना होगा। स्वच्छता …
  • चरण स्पर्श की महत्ता तथा नियम
    चरण स्पर्श का महत्व- चरण स्पर्श करना हमारे देश की एक अत्यंत प्राचीन परम्परा है।हमारे पूर्वजों तथा विद्वानों की एक विशेष उपलब्धि यह है कि उन्होंने वर्षो पूर्व अनेकों परंपराओं के पीछे छिपे रहस्य को समझ लिया था, वह भी तब जब विज्ञान ने इतनी उन्नति नहीं की थी। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे सूक्ष्म रहस्यों को समझ कर उनके महत्व को हमें ऐसे समझाया कि वो हमारे संस्कार बनते चले गए। स्वयं से आयु में बड़े लोगों, अपने गुरुजनों तथा माता-पिता के चरण स्पर्श …

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