गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो सम्पूर्ण भारत में विशेषतः महाराष्ट्र व गुजरात में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भारत में ही नहीं अपितु विश्व के हर कोने में श्रद्धालु गणेश जी का स्वागत व उनकी श्रद्धापूर्वक स्थापना करते हैं, पूजन करते हैं व धूमधाम से उनका विसर्जन करते हैं।
गणपति की शारीरिक संरचना का अर्थ
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी का नाम हिंदू शास्त्र के अनुसार किसी भी कार्य के लिए पहले लेना पूज्य माना गया है। यही कारण है कि यह प्रथम पूज्य हैं।
गणेश को गणपति भी कहा गया है। उनकी शारीरिक संरचना भी विशिष्ट व गहरा अर्थ लिए हुए है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे वाला भाग उदर, चंद्र बिंदु को लड्डू, औ मात्रा को सूँड़ कहा गया है।
चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजायें हैं। वह लंबोदर हैं, क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में ही विचरण करती है। कान बड़े हैं, कारण उनमें ग्राह शक्ति अधिक है। छोटी पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि दर्शाती हैं। उनकी सूँड़ उनके महाबुद्धित्व की प्रतीक है।
शास्त्रानुसार गणेश जी का विवाह भी हुआ था। इनके रिद्धि व सिद्धि नाम की दो पत्नियां थीं, दो पुत्र थे शुभ और लाभ।अक्सर गणेश जी के आसपास शुभ व लाभ दिखाए जाते हैं। गणेश पूजा सिद्धियाँ प्राप्त करवाती हैं, लेकिन इनकी भक्ति मोक्ष प्राप्ति हेतु नहीं है।
गणपति जी के प्रमुख नाम
इन के 12 नाम प्रमुख हैं –
- सुमुख
- एकदंत
- कपिल
- गजकर्णक
- लम्बोदर
- विकट
- विघ्ननाशक
- विनायक
- धूम्रकेतु
- गणाध्यक्ष
- भालचन्द्र
- गजानन
यह नाम गणपति की आराधना का विधान माने गए हैं।
इनके भाई कार्तिकेय, बहन अशोकसुंदरी बताई गई हैं। प्रिय भोग इनका मोदक ही है। प्रिय पुष्प इनका लाल रंग का है चाहें गुलाब या गुड़हल का हो। इन की सबसे प्रिय वस्तु दुर्वा(दूब) है, शमीपत्र भी है। गणेश जल तत्व के अधिपति हैं। इनके प्रमुख अस्त्र पाश व अंकुश हैं। गणेश जी का प्रिय वाहन मूषक है।
ज्योतिष शास्त्रानुसार गणेश को केतु के रूप में जाना जाता है। “केतू” एक छाया ग्रह है जो “राहु” नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध करता है।
बिना विरोध के “ज्ञान” नहीं आता और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं है।
गणेश सर्वत्र देखते हैं, वह साधन के रूप में प्रत्येक कण में विद्यमान हैं। कहने का तात्पर्य है कि “साधन ही गणेश हैं”। वे अकेले शंकर-पार्वती के पुत्र व देवता ही नहीं हैं बल्कि जीवन में प्रयोग आने वाले सभी साधन “गणेश” ही हैं। समस्त कल्याणकारी कार्य संपन्न करने वाले केवल एक ही देव हैं, “श्री गणेश” अन्य कोई नहीं, यह शास्त्रानुसार सिद्ध है, जो ऋषियों को सूत जी ने कही जो नैमिषारण्य में कथाकार थे।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाते हैं। इसी दिन श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन विधि-विधान से विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा की जाती है।
गणपति स्थापना के नियम
श्री गणेश स्थापना के कुछ नियम हैं। जब घर में गणपति की स्थापना करनी हो तो हमें कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।
- सर्वप्रथम गणपति जी की मूर्ति 1 दिन पहले लेने जाते समय हाथ में दूब, सुपारी व पैसा लें तथा सर्वप्रथम दुकानदार को रोली, चावल से तिलक करें और उसके हाथ में दूब, सुपारी व पैसा रख दें तथा मूर्ति को बुक करवा कर कि “हम कल ले जाएंगे”, उसकी ही दुकान पर रख कर घर आ जायें।
- गणपति को सदैव मुँह ढक कर ही दूसरे दिन घर लाएँ। घर पर आकर दरवाजे पर जो मुख्य द्वार है वहाँ चौक पूरकर (लगाकर), चौकी रखकर, कच्चा दूध व शक्कर डालकर गणपति जी को बैठाकर उनके पैर पर जल छिड़कें (पैर पखारें), पूजा अर्चना कर लें, आरती व भोग लगाकर तत्पश्चात् मंदिर या घर में जहाँ उनकी स्थापना की तैयारी निश्चित कर रखी है, वहाँ उन्हें लेकर आ जाएँ। यह ध्यान रखें कि गणपति जी का मुख घर के अंदर की तरफ हो, बाहर की तरफ नहीं।
गणपति का भोग लगाने की विधि
दिन में तीन बार सुबह, दोपहर व शाम तीनों समय विधिवत् भोग अदल-बदल कर लगाएँ।
उदाहरण के रूप में जैसे-
- सुबह- सुबह के समय सर्वप्रथम हम विधि-विधान से गणपति जी की पूजा-अर्चना करने के पश्चात भोग में गणपति के प्रिय लड्डुओं का भोग लगाएँ।
- दोपहर- दोपहर में गणपति जी की पूजा अर्चना के पश्चात मेवायुक्त खीर का भोग लगाएँ।
- शाम- साँयकाल, पुनः पूजा-प्रार्थना करने के बाद गणपति जी को अतिप्रिय मोदक का भोग लगा गणपति जी को प्रसन्न करें।
इस प्रकार सम्भव हो तो नित नए व्यंजनों का भोग लगाएँ। यहाँ ये कहना उचित होगा कि जितने भी दिन गणपति जी को स्थापित करें, उनकी पूजा अर्चना के पश्चात विभिन्न व्यंजनों का भोग लगा प्रभु को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
गणपति विसर्जन
विसर्जन के समय भी विधिवत पूजन करें, आरती करें, भोग लगाएँ, साथ में गणपति के भोजन, पानी की भी व्यवस्था करें। घर से भूखा-प्यासा देवता विदा नहीं होना चाहिए। विसर्जन के पहले पूजा विधि भी हो सके तो उस स्थान पर भी करें, तत्पश्चात् विसर्जन करें।
घर आकर कुछ भजन गाएँ। वैसे तो रोज़ ही भजन गाने चाहिए। एक बात का ध्यान और रखें कि जहाँ से गणपति जी की मूर्ति लायें, उस दुकानदार को श्रद्धापूर्वक ऊपर से रुपए अवश्य दें।
विशेष- गणेश जी कोई ढाई दिन रखता है, कोई पाँच दिन, कोई सात दिन व कोई दस दिन। अधिकांश डोल ग्यारस या अनंत चतुर्दशी को विसर्जित किया जाता है पर जितने समय रखना हो सर्वप्रथम स्थापना के समय आप उनसे अवश्य प्रार्थना स्वरूप बता दें।
संकलन एवं लेखन: रति चौबे, नागपुर