एकादशी

🚩एकादशी व्रत का महत्व🚩

हमारी भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस व्रत की की हमारे हिंदू धर्म में बड़ी महत्ता है। यही कारण है हिंदू धर्मावलम्बी बड़ी श्रद्धा और निष्ठा के साथ एकादशी का व्रत करते हैं।

एकादशी देवी थीं जो भगवान विष्णु के द्वारा उत्पन्न की गई थीं। भगवान विष्णु के प्रकट करने के कारण ही एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

🚩एकादशी व्रत क्या है🚩

एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन एवं वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत एकादशी व्रत कहलाता है। पद्म पुराण में भी एकादशी महा पुण्य प्रदान करने वाली उल्लेखित है।

कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को करता है उसके पितृ तथा पूर्वज बुरी योनी को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि हिंदू पंचांग की 11वीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी संस्कृत भाषा से लिया शब्द है। यह माह में 2 बार आती है, पूर्णिमा के बाद तथा अमावस्या के बाद। इस तरह से एकादशी साल में 24 होती हैं लेकिन अधिक मास को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है।

🚩एकादशी का महत्व🚩

पुराणों के अनुसार एकादशी को हरी दिन और हरी बासर भी कहते हैं।यह व्रत वैष्णव तथा गैर-वैष्णव भी करते हैं ऐसा कहा जाता है। एकादशी का व्रत हवन, यज्ञ, वैदिक, कर्मकांड आदि से अधिक फल देता है।स्कंद पुराण में भी इसके महत्व का वर्णन है।



🚩नियम🚩

एकादशी व्रत करने के नियम बहुत सख्त होते हैं। व्रत. करने वाले को एकादशी तिथि से पहले सूर्यअस्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास करना पड़ता है। अर्थात दशमी के दिन सूर्य अस्त के बाद से व्रत शुरू हो जाता है। दशमी के दिन भी कुछ नियम पालन करने पड़ते हैं। उदाहरण स्वरूप मांसाहार नहीं किया जाता, प्याज व मसूर की दाल व शहद का सेवन भी नहीं किया जाता।
एकादशी के दिन सुबह दातून का इस्तेमाल ना करें। इसके स्थान पर नींबू, जामुन या आम के पत्ते चबाकर उंगली से दांत साफ करें। इस दिन पत्ते तोड़ना वर्जित है व गिरे पत्ते प्रयोग में लाए जाते हैं। स्नानादि के पश्चात मंदिर जाकर गीता का पाठ करें तथा ओम भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें तथा यथाशक्ति दान करें।
दूसरे दिन अर्थात द्वादशी के दिन आम दिनों की तरह कार्य करें। सुबह उठकर भगवान विष्णु की पूजा करें तथा उसके पश्चात सामान्य भोजन लेकर व्रत समाप्त करें। इस बात का ध्यान रखें कि त्रयोदशी लगने से पहले ही व्रत का पारण कर लें।

🚩भोजन🚩

एकादशी के दिन व्रती ताजे फल, चीनी, कूटू, नारियल, जैतून, दूध, अदरक, काली-मिर्च, सेंधा-नमक, आलू, साबूदाना और शकरकंद का प्रयोग कर सकते हैं।

🚩एकादशी को वर्जित कार्य🚩

  1. वृक्ष के पत्ते ना तोड़े।
  2. बाल नहीं कटवाए।
  3. कम बोले, यदि संभव हो तो मौन करें।
  4. चावल का सेवन वर्जित है।
  5. किसी का दिया हुआ अन्न न खाएं।
  6. फलाहार में गोभी, शलजम, पालक का सेवन न करें।
  7. ब्रह्मचर्य का पालन करें।

🚩एकादशियों के नाम🚩

वर्ष भर में होने वाली 24 एकादशियों को हिंदू धर्म में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तथा इनके अलग-अलग महत्व भी हैं। पूजन विधि में भी थोड़ा सा फर्क होता है।

1- पुत्रदा एकादशी-

पुत्रदा एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन केसर, केला तथा हल्दी का दान दिया जाता है। चावल खाना पूरी तरह से वर्जित है। साल में दो पुत्रदा एकादशी होती हैं। पौष माह मेंऔर श्रावण शुक्ल पक्ष में। संतान प्राप्त हेतु इसका व्रत किया जाता है साथ ही में जिस व्यक्ति का विवाह ना हो रहा हो या जल्दी विवाह योग चाहते हों, तो भी इस का व्रत किया जाता है।

2. षटतिला एकादशी —

षटतिला एकादशी माघ कृष्ण एकादशी को कहते हैं। हरि, विष्णु तथा कृष्ण की आराधना इस दिन होती है। दरिद्रता, दुर्भाग्य दूर करती है। इस दिन तिल का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहते हैं।

3. जया एकादशी —

माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। भगवान विष्णु की पूजा तथा विष्णु मंत्रों का 108 बार जाप तुलसी की माला से किया जाता है तो फलदायक होता है। भगवान विष्णु की शालिग्राम के रूप में पूजा की जाती है।
इस दिन यह कार्य वर्जित हैं-
पान ना खाएं, निंदा या आलोचना से बचें, स्त्री साथ वर्जित है।

4. विजया एकादशी–


यह एकादशी फागुन मास के कृष्ण पक्ष को होती है। जैसा कि इसका नाम है, यह शत्रु पर विजय दिलाती है। जब आप भयंकर शत्रुओं से घिरे हों और पराजय सामने दिख रही हो, उस समय विजया एकादशी करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में बहुत से राजाओं ने विजया एकादशी का व्रत कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। पूजा में 7 प्रकार के धान्य तथा घट की स्थापना होती है। गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और अरहर बिछाकर उस पर घट रख विष्णु की पूजा की जाती है।

5. आमलकी एकादशी–


फागुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी आमलकी एकादशी कहलाती है। भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है। इसे रंगभरी ग्यारस भी कहते हैं। जीवन में सुख संपन्नता प्रदान करने वाली एकादशी है।आंवले के पेड़ का पूजन करें। पेड़ की 27 या साथ 9 या आवाला दान करें।

6. पाप मोचनी एकादशी–


यह चैत्र मास की कृष्ण पक्ष को मनाई जाती है। इस का व्रत करने से मनुष्य के पाप तथा संकटों से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।

7. कामदा एकादशी


चैत मास की शुक्ल पक्ष को जो एकादशी आती है कामदा एकादशी कहलाती है। इस एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म हत्या पिचासतत्व दोषों का नाश होता है। यह चैत्र मास की प्रतिपदा के बाद पड़ती है और मनुष्य के मनोरथ पूरे करती है, इसका उल्लेख ब्रह्मपुराण में भी है। भगवान विष्णु के साथ कृष्ण की पूजा भी की जाती है।

8. वरुथिनी एकादशी—


वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। यह सौभाग्य प्रदान करने वाली होती है। कहा जाता है कि 10 सहस्त्र बरस तक तप करने का जो फल प्राप्त होता है वह वरुथिनी एकादशी व्रत करने से ही प्राप्त हो जाता है।

9. मोहिनी एकादशी—


वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य जाल से छूट जाता है तथा मनुष्य के जो पाप हैं उनसे भी उसे छुटकारा प्राप्त हो जाता है। इसलिए मोहिनी एकादशी के व्रत का बहुत महत्व है।

10. अपरा एकादशी —


जेठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, साथ ही इसे भद्रकाली जल क्रीडा एकादशोभी कहते हैं। इस एकादशी की पूजा में चंदन, श्रीखंड, तुलसीदल, गंगाजल तथा फल का प्रयोग करना आवश्यक है तथा उसी का प्रसाद लगाया जाता है। यह व्रत कष्टों से छुटकारा दिलाता है, सुख मिलता है व धनसंपदा मिलती है।

11. निर्जला एकादशी —


जेठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित होता है इस दिन बिना जल के व्रत किया जाता है। दान में वस्त्र, छाता, फल भी दान दिए जाते हैं। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इसका व्रत दीर्घायु तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए किया जाता है। भगवान विष्णु को आम या गुलाब शरबत का भोग लगा पीले फूल चढ़ाकर एकादशी का व्रत करते हैं। एक मटके में जल या शरबत भरकर पंखा दान करने का अधिक महत्व है।

12. योगनी एकादशी —


आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इस योग योगिनी एकादशी का व्रत का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर प्राप्त होता है।इसदिन अन्न दान किया जाता है।यह व्रत कल्पतरू के समान होता है।

13. देवशयनी एकादशी—


यह आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं, इसका विशेष महत्व है । इसे हरिशयनी व पद्मा एकादशी भी कहते हैं। इसी दिन से चतुर्मास का प्रारंभ होता है। विष्णु सहस्त्र नाम तथा पुरुष सूक्त का जाप करना चाहिए। भगवान विष्णु भी 4 माह तक पाताल लोक में निवास करते हैं तथा क्षीरसागर की अनंग शैया पर शयन करते हैं। इस दिन से शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है।

14. कामदा एकादशी–


श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव तथा विष्णु का पूजन इस दिन किया जाता है। इस व्रत को करने का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान प्राप्त होता है।

15. श्रावण पुत्रदा एकादशी–


सावन शुक्ल एकादशी का नाम श्रावण पुत्रदा एकादशी है।

16. अजा एकादशी–


भादो महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं। इसे कामिका या अन्य दा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खास बात यह है कि एकादशी के पूरे दिन भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाया जाता है दीपक द्वादशी को हटाए तथा भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा होती है। यह बात करने से सर्व मनोरथ पूर्ण होते हैं।

17. परिवर्तनी एकादशी—


भाद्रपद की शुक्ल की एकादशी को परिवर्तन एकादशी कहते हैं। इसे जयंती एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है तथा वामन रूप की पूजा करने से तीन लोकों की पूजा करने का फल प्राप्त होता है।

18. इन्दिरा एकादशी–


पित्र पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। इस दिन पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है। पिंडदान की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है। भगवान विष्णु को पीले फूल चढ़ाए जाते हैं व उड़द की दाल की खाद सामग्री का प्रसाद लगाया जाता है।

19. पद्मिनी एकादशी–


पुरुषोत्तम मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। मलमास में आने के कारण इसे पुरुषोत्तम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है
मलमास में वैसे भी दान दक्षिणा का महत्व बहुत अधिक होता है।

20. परम एकादशी–


अधिक मास में पढ़ने वाली एकादशी को परमा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को भी सभी प्रकार के दान महत्वपूर्ण होते हैं।

21. पापं-कुशा एकादशी—


अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पाप कुशा एकादशी कहते हैं। भगवान विष्णु के पदम नाम रूप की पूजा की जाती है। इस दिन हाथी को प्रेम रूपी अंकुश से भेदने के कारण रात में भगवान विष्णु की मूर्ति के पास सोना चाहिए। इस दिन मौन रखने का विधान है।

22. रमा एकादशी —


इसे रंभा एकादशी भी कहते हैं। विष्णु तथा माँ लक्ष्मी दोनों की पूजा की जाती है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं। माता लक्ष्मी से संबंधित होने कारण ही इसका नाम रमा एकादशी पड़ा।

23. देवोत्थान एकादशी —


इसे देवउठनी, देव प्रबोधनी तथा हरि प्रबोधिनी एकादशी के नामों से जाना जाता है। इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम जी के साथ हुआ था। इस एकादशी की खास बात यह है कि इसके बाद ही शादी-ब्याह के मुहूर्त प्रारंभ हो जाते हैं। आदि पुराण के अनुसार यह बुद्धि तथा शांति प्रदाता, संतान दायक एकादशी होती है। भगवान विष्णु चार मास के शयन के बाद आज ही उठते हैं। घर-घर में देवोत्थान की पूजा की जाती है।


24. उत्पन्ना एकादशी —


यह साल की सबसे बड़ी एकादशी है। यह अगहन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी है। एकादशी का व्रत उत्पन्ना एकादशी से प्रारंभ होता है। जो लोग एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं वह इसी एकादशी से प्रारंभ होता है व बीच की एकादशी से प्रारंभ नहीं किया जाता है। एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म विष्णु जी से हुआ था अर्थात विष्णु जी से उत्पन्न हुई थी इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।

25. मोक्षदा एकादशी —


मोक्षदा एकादशी के दिन विष्णु भगवान की पूजा के साथ कृष्ण की पूजा भी होती है। भगवान विष्णु की पूजा तुलसी की मंजरी से की जाती है, गीता का पाठ किया जाता है। ऐसा करने से पापों का शमन होता है तथा इस एकादशी का व्रत करने से गंगा स्नान का फल भी प्राप्त होता है।

लेखिका: श्रीमती उषा भरत चतुर्वेदी: भोपाल

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