डाला- भात चढ़ने का कार्यक्रम एवं भातियों का स्वागत एवं विदाई

डाला- भात चढ़ने का कार्यक्रम एवं भातियों का स्वागत एवं विदाई-

सबसे पहले भातियों के स्वागत के लिये पाउड़े बिछाये जाते है अर्थात एक साड़ी मण्डप तक बिछाई जाती है जिस पर 7 सकोरी कच्ची और नीचे हर सकोरी के 1-1 कच्ची पूड़ी रखी जाती है जिस पर पाँव रख कर मामा व भातिये आते है। मामा पहले बहन बहनोई को भात पहनाते है। हम लोगो में शगुन-सात भातिया यानि भाई बहन को घाट पहनाता है। तब उपहार स्वरूप अन्य सामान देते है। साथ ही बहनोई को भी तिलक करके उपहार रूप में कपड़ा देते है। उसके बाद भातियों में घर परिवार के अन्य सदस्य का सम्मान कर कपड़े या उपहार देते है। मण्डप के नाचे ही भाई बहन को घाट के साथ साथ लाल साड़ी पहनाता है। इसका हर बहन हर नारी के जीवन में बड़ा महत्व है।

भातियो का स्वागत एवं विदाई

भाई द्वारा बहन बहनोई व परिवार को भात पहनाने के बाद सबसे पहले बहन अपने भाई (सबको) को शगुनसात तिलक करती है और शगुन के रूप में हर भाई- भतीजे को 1-1 गोला व रूपये देती है। इस के साथ सभी भाई भतीजो, भाभी जो भी भातियों के रूप में (मामा के ) से आये है। उन को सम्मान के साथ तिलक करके भेंट स्वरूप कपड़ा वगैरह देती है। यहाँ ये बताना जरूरी है कि गैर हाजिर भाई भतीजो के नाम के भी गोले दिये जाते है।

और विदा के वक्त भाभी, भतीजी बहनों, बच्चों को कपड़े व मिठाई देती है। भात चढ़ते वक्त भात गाया जाता है। इसके बाद यहाँ के सब सदस्य मामा को तिलक करते हैं व भेट स्वरूप कुछ देते है।

जिस तरह भातिये भावना से ओतप्रोत बहन बहनोई व पूरे परिवार का मान सम्मान करते है।

उसी तरह बहन भी गर्व के साथ भाई-भतीजों का पूरे हर्ष के साथ उपहार देकर स्वागत करती है।