भादो माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म बड़े उल्लास साथ मनाया जाता है। इस दिन व्रत किया जाता है परन्तु ऐसा मानना है कि हर छठ व बहुला चौथ का व्रत करने वाली महिलाओं को अष्टमी का व्रत नहीं करना चाहिये। पूजा विधि-विधान से करी जाती है। जन्माष्टमी को दिन भर सब तरह के व्यजंन- तरह-तरह के पाग, पंजीरी, पंचामृत, सकल पाड़े इत्यादि बनाये जाते है। रात्री में सायं लडडू गोपाल को पूँछ वाले खीरे को चीर कर उसमे बैठाया जाता है।
ऐसा मानना है कि खीरे को बरफी के आकार का चीर कर टुकड़ा निकालें, अन्दर का गूदा निकाल कर लडडू गोपाल को उसमें लेटा दें व ऊपर से खीरे से ढक दें। मानें कि लडडू गोपाल गर्भ में है। रात में बारह बजे उनके जन्म के समय लडडू गोपाल को खीरे से निकाल कर लडडू गोपाल को पहले पंचामृत में स्नान करायें, फिर गंगा जल से स्नान करायें। अब नए वस्त्र व आभूषण पहनाकर रोली, चावल, फूल से पूजा-अर्चना करें। जनम के समय शगुन की थाली बजायें। भगवान की आरती करें। तत्पश्चात समस्त बनाई गई सामग्री का भोग लगायें। हम लोगो में लड़का होने पर शगुन में थाली बजाने की रीत है।