माँगर, तेल, ताई, मूरवान

माँगर- माँगर में कमरे या बरामदे में देहरी पर आली चौक लगाया जाता है। बन्नी (कन्या) को आली चौक पर बैठाकर पहले माँ की चोटी होती है। फिर लड़की की चोटी होती है। चोटी करने वाली महिलाएं आँचल में चावल, बताशा व रूपये रखती है। साथ में बिनैगरिया बैठाई जाती है। उस दिन ऐपन पैरों पर लगाया जाता है। माँगर के दिन कच्चा भोजन यानि चने-बरी का झोर, उर्द/घोई, भात, सब्जी पूड़ी बनती है।भोजन का अछूता निकलता है। उस वक्त से बन्नी गीत गाया जाता है। माँगर के बाद शाम को छेई पूजा होती है। उसमें थाली में दो दिये, सात आम की लकड़ी, गुड़ की ढेली, रोली, अक्षत, पैसा, ऐपन घोलकर रखा जाता है। लोटे में पानी, सूखा आटा लेकर बाहर दीवार पर थापन रखते है। घुँघरू का सादा चौक लगता है। माँ, चाची, भौजाई कोई भी पूजा करवाती है। लकड़ी चौक पर रखी जाती है। थापे पर अक्षत, पैसा, गुड़ चढ़ाया जाता है। पूजा बाद सात स्त्रियाँ (सुहागन) लकड़ी उठा लाती है। व तेल वाले दिन उसे चूल्हे में जलाती है। एक दिया थाली में लौटा लाते है। घर में घुसते ही माँ चाची थापे लगाती है।

तेल- तेल चढ़ाने के लिये आँगन में सादा चौक लगाया जाता है। लड़की को चौक पर बैठाकर साथ में बिनैगरिया बैठती है। उसमें पहले माँ या भाभी कटोरी में तेल डालकर व दूब घास डालकर लोहे की कील, अठयावरी यानि आठ छोटी पूड़ी, बताशे, अक्षत, पैसे आदि थाली में डालकर माता की पूजा करने जाते है। तेल, दूब हल्दी मिलाकर एक लोहे की कील डालकर सात पूड़ी, बताशे, रूपये चढ़ाये जाता है। जरा सा तेल देवी को छुआया जाता है। वही तेल घर पर लड़की को चढ़ाया जाता है। सीआ दोहा गाया जाता है। सात सकोरे इनमे 1-1 रू0 सुपाड़ी, जीरा, धनिया थोड़े थोड़े रखे जाते है। ये तेल चढ़ाने वाली औरतो को बाँटा जाता है। उसी दिन दो नये पटे रखे जाते है। नया कलश व थाली इसमें सात सौभाग्य शाली महिलाये तेल चढ़ाती है और उनको सकोरे दिये जाते है। लड़की के मुँह (चेहरा) हाथ पैर आदि पर ऐपन लगाया जाता है।

मूरवान- शादी के एक दिन पहले मूरवान होता है। सादा चौक लगता है। चौक पर लड़की बैठती है। लड़की की क्वारगत उतरती हैं। इसमें सिल पर चूड़ी उतरवा कर बुआ रखवाती है फिर थाली में रखकर घूरे पर ले जाते है। थाली मे सकोरे, चावल, उड़द, पाँच गुलगुले, दो दिये तेल के, कील, ये सब सामाग्री घूरे पर ले जाकर दोना जिसमे चावल, उड़द, गुलगुले है वहाँ घूरे पर चौक लगाकर रोली चावल चढ़ा आते है बाद में ये सामान कामवाली ले जाती है कील को लड़की गाढ़ आती है। एक दिया साथ में लौटा लाते है। दरवाजे पर दोनो तरफ थापे लगाकर अन्दर आते है। इसके बाद आटे की जीभ बनती है। एक सरैया यानि कुल्लड़ में पैसा व जीभ रखकर हाथ से बंद कर दी जाती है और सारे देवी देवता आँधी पानी अड़ौसी पड़ोसी सूरज चन्दा चारो दिशाये “सब मेरे न्यौते” यह कह कर सब को नाम ले ले कर न्यौते जाता है। आँचल में दिया रखकर तब न्यौता जाता है और उस बंद जीभ को हलवाई की भट्टी में छिपाकर रख दिया जाता है। जिससे पूरे विवाह भर वो किसी को दिखाई न दे। साथ ही रिश्तेदारो की जीभ भी नाम ले ले की मूँदी जाती है। जैसे (मूदो मूदो री फलाने) “नाना की जीभ”।