सुहागिन खिलाना

विवाह अथवा कोई अन्य शुभ कार्य शुरू करने से पहले सबसे पहले अपने घर खानदान (परिवार) की जो भी बड़ी सुहागिन गई है (जैसे ददिया-सास, तईया-सास, चचिया-सास, जेठानी) उनके नाम से सुहागिन खिलाई जाती है। सुहागिन खिलाने के लिये घर परिवार की सुहागिन महिला (जहाँ तक हो जोड़े से) ननद, जिठानी, सास कोई भी हो सकती है। जहाँ तक हो जोड़े से खिलाना चहिये अपितु अगर अकेले ही खाने आयी हों तो भी खिला सकते है। सुहागिन महिला को (जोड़े से) रोली-चावल से टीका करके मिठाई से मुँह मीठा कराते है। सुरूचि पूर्ण एवं श्रद्धाभाव से पूर्ण भोजन कराते है। व भोजन के पश्चात शगुन में साड़ी-ब्लाऊज, सुहाग का सामान, फल, मिठाई देते है। व पुरूष को दक्षिणा के रूप में रूपये देते है। सुहागिन के पैर छूने के साथ साथ मन ही मन अपने पितरो से प्रार्थना करते है। कि हम आज तुम्हारे नाम की सुहागिन खिला रहे है। हमारे घर के सारे शुभ कार्य निर्विघ्न पूरे करना। कोई भूल चूक अथवा गलती हो जाये तो क्षमा करना व अपने परिवार की रक्षा करना। सुहागिन खिलाते वक्त रोली-चावल से उनका टीका लगाना, माँग़ भरना व अलता शगुन होता है।