- रतवारे क्या होते हैं।
- कब कब होते हैं।
- कैसे होते हैं।
“रतवारे” के विषय में पूर्ण विवरण विस्तार।
रतवारे कारण विस्तार-
रतवारे अपने घर खानदान के “नाग देवता” के नाम के किये जाते है। रतवारे में बच्चा होने पर ‘छोड़ा बाड़ी’ की जाती है। जिन परिवारों में अब रतवारे ‘छोड़ा बाड़ी’ नहीं कराई जाती है, उनके यहाँ बच्चा होने पर बाहर आते ही (डिलीवरी के तुरन्त बाद) नाग देवता के नाम से उसारा करके रूपये उठाकर रख दिये जाते हैं।
रतवारे दो बार होते हैं। –
पहला- जुलाई में सप्तमी को होते है।
दूसरा- शरद पूर्णिमा को होते है। ये घर परिवार के नाग देवता के नाम के होते है।
- रतवारे क्वार व आषाढ़ में होते है।
- किसी के यहाँ एक या किसी के यहा दोनो होते है।
- जिनके यहा रतवारे होते है। उनके यहाँ मुण्डन व छठी धूमधाम से अर्थात् विधि विधान से नही होते है।
- रतवारे एक दिन के ही होते है। दिन में नाग रखे जाते है व तब तक ‘छोड़ा बाड़ी’ की जाती है।
- जिनके यहाँ रतवारे नहीं होते हैं उनके यहां मुण्डन व छठी धूमधाम से होती है।
- ये सिर्फ जातक के ही होते है। ये सिर्फ घरवारी, अल्ल ही होते है। एक रतवारे क्वार उतरते शरद पूर्णिमा को होते है। दूसरे रतवारे आषाढ़ उतरते सप्तमी को होते है। पाठको में सिर्फ एक ही रतवारे होते है। बालक के जन्म के तुरन्त बाद पड़ने वाले रतवारे यानि आषाढ़ या क्वार जो भी होगे वह उसके पहले रतवारे कहलायेगे। यदि बालक का जन्म आषाढ़ सप्तमी या शरद पूर्णिमा के दिन सवेरे ही हो जाये तो उसी दिन रतवारे हो जाते है। व उनको पहले रतवारे कहते है। तब अगले रतवारे दूसरे रतवारे कहलाते है। पाठक अल्ल में सिर्फ आषाढ़ वाले ही मनाये जाते है।