मुण्डन संस्कार से एक दिन पहले मुण्डन की छठी पूजने का विधान है। सबसे पहले मिट्टी के कलश पर गौर बना कर चावल,फूल, बताशे से गौर की पूजा होती है। मुण्डन से एक दिन पहले छठी सफेद कपड़े पर बनाकर दीवाल पर लगाई जाती है। नाग बिना पुतली के बनाये जाते हैं क्योंकि पूजा के समय ही नागो की पुतली बनाई जाती है। पूर्व में मुंह करके छठी रखी जाती है। सबसे पहले गौर पूजकर सुहागिन खिलाई जाती है। (जिन परिवार में प्रचलन हो) गणेश जी का पूजन कर बालक को घर के बुजुर्ग की गोद में बैठाकर तथा बालक को मांगलिक तिलक लगाकर “जरूली” (बालों में) कलावा बँधवा कर हाथ में मिठाई देकर बुजुर्ग को उठा देते है। बालक की माँ सेत की साड़ी पहनती है। बालक को गोद में लेकर छठी के सामने चौक पर बैठती है।
छठी के सामने 50 दिये रखे जाते है। 25/25 दिये। दायीं तरफ के 25 दिये जलाये जाते है। और बाँयी ओर के दियो में 4-4 दाने (खड़े) उर्द के डाले जाते है। बहू सुबह सिर घोकर नहाती है। और छठी के दिन व्रत रखती है। बालक की माँ सेत पहन कर और बालक को गोद में ले कर छठी का पूजन करती है। सबसे पहले छठी के नागो पर ऐपन से (आटे हल्दी का घोल) नागो के ऊपर पान लगाये जाते हैं । पान इस प्रकार लगाये जाते है कि ऊपर की तरफ पान की नोंक व नीचे की ओर पान की डंडी होती है। उसी समय बहू पूजन से पहले नागों की पुतली बनाती है। नागों पर 1-1 सिक्का ऐपन से लगाया जाता है। उक्त नागों पर शर्बत चढ़ाया जाता है। इसके उपरान्त जल चढ़ाया जाता है। 5 पान नागों पर लगेगे। आरता होगा, 4-4 दाने चने को (भीगे हुये) छठी पर (नाग देवता पर) रात भर चढ़ाये जाते है।