कन्या रत्न की प्राप्ति होने पर यानी लड़की के जन्म लेने पर लड़की की छठी पाँचवे दिन होती है। छठी के दिन उपरोक्त विवरण के अनुसार ही चूल्हे पर चौक लगाकर रोली, चावल, बताशे से चूल्हे की पहले पूजा की जाती है। उसके बाद चरुआ रखा जाता है। चरुआ रखने का विधान लड़का/लड़की का एक जैसा है। परन्तु शाम को लड़की की छठी में दरवाज़े के दोनो ओर छठी नहीं रखी जाती है। केवल काजल लगाया जाता है और काजल लगाई नेग बुआ को दिया जाता है। भोजन में चने बरी का झोर, उर्द/धोई, भात बनता है। बच्चे को गोद में लेकर रात भर जागरण किया जाता है। व सोहर गाया जाता है।
नोट- बालक/बालिका के जन्म से 10 दिन तक सूर्य को जल चढ़ाना, तुलसी पर जल चढ़ाना, पूजा करना निषेध है। इस दौरान ख़ानदान के अतिरिक्त अन्य लोगों को भोजन व पानी देना वर्जित है। ग्याहरवे दिन से समस्त कार्य किए जा सकते हैं।
काजल लगाई– बनाना और लगाना–
बादाम चम्मच में जलाकर काजल बनाया जाता है और उसमें ज़रा सा देशी घी मिलाया जाता है। और काजल लगाई बुआ को नेग दिया जाता है। छठी के दिन बच्चे को बुआ द्वारा काजल लगवाया जाता है।