चौक से पहले अच्छा दिन देखकर यानि बृहस्पतिवार या रविवार को चौक लगाकर कलश पर गौर बनाकर दिन रख लिया जाता है।
विधि- चौक के दिन बहू सुबह सिर धोकर नहायेगी। स्नान करके निकलते समय घर का छोटा लड़का (बालक) बहू की अंगुली पकड़ कर कमरे तक लाता है। सबसे पहले बहू नीले की साड़ी पहनेगी। चौक पर बैठकर पहले बहू गौर पूजेगी। इसके बाद गोद में (पोलिथिन) में 8 पूड़ी, 8 लड्डू, 4 फर आटे के. 21 रू0 गोद में डालकर ‘चाँक बाँस’ की पूजा करेगी। और रूठ कर दूसरे के घर में जायेगी। वहीं नाश्ता पानी कराया जाता है वहीं मेहन्दी लगती है, पूरा श्रृंगार होता है और सेत की साड़ी पहनती है। इधर पहले मातृ-पूजन होता है। मातृ पूजन में घर के सबसे बड़े बुजुर्ग को बैठाया जाता है। तब ससुर बहू को मनाने जाते हैं।
बहू सेत पहनकर हाथ में सजे हुये नारियल पर जलता हुआ दिया लेकर ससुर बहू को मना कर लाते है। ससुर दिया बहू के हाथ से लेकर मन्दिर में रख देते है। दिया उतराई बहू को नेग (गहना) देते है। सब घर परिवार के लोग बहू को तिलक करते जाते है व नेग देते है। इसके बाद बहू घाट पहनकर हवन के लिये बैठती है। बहू की गोद में गुड्डा (बबुआ) रखा जाता है। हवन के लिये लड़का बहू गाँठ जोड़कर बैठते है। हवन के बाद कमिया उड़ाकर सास अपने दोनो हाथो की ऊँगली में भीगे हुए चने भरकर बहू के सिर पर इस प्रकार डालती है कि चने बहू के आगे की ओर अर्थात आचल की तरफ गिरें। ये काम 7 बार होता है।