स्वास्तिक सदा से ही शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में स्वास्तिक का अर्थ है शुभ होना। “स्व” का अर्थ है शुभ व “अस” का अर्थ है होना अर्थात शुभ होना। स्वास्तिक केवल एक चिह्न ही नहीं है वरन हमारी शक्ति और विश्वास का नाम है। यह हमारे मांगल्य का प्रतीक है।
स्वास्तिक दो प्रकार के माने गए हैं।
- सकारात्मक
- नकारात्मक
- सकारात्मक स्वास्तिक: हमारे पूजा विधान में हर मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम लगाए जाते हैं। यह हल्दी, रोली तथा सिंदूर से बनाए जाते हैं।
- नकारात्मक स्वास्तिक: यह काले रंग से बनाए जाते हैं। यह नकारात्मक शक्तियों को रोकने के लिए बनाए जाते हैं। इसको कोयले या काले रंग से बनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त इसका एक और प्रकार है। इसे उल्टा सतिया (वामवर्तीय) स्वास्तिक कहते हैं। यह किसी मानता को मानकर बनाया जाता है और कार्य पूरा होने पर सीधा कर दिया जाता है। यह भी हमारे विश्वास का ही प्रतीक है।
स्वास्तिक बनाते समय इस प्रकार का चिन्ह बनाते हैं जो चारों दिशाओं का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार ओम (ॐ) शिव जी का प्रतीक है उसी प्रकार स्वास्तिक श्री गणेश जी का प्रतीक है और श्री गणेश शुभता के प्रतीक हैं।
स्वास्तिक के बनते ही ऐसा विश्वास कहिए या मिथक, मन में यह विश्वास हो जाता है कि अब चारों ओर मंगल ही होगा। घर में गणेश जी की कृपा सदैव बरसेगी तथा धन-धान्य की कमी नहीं होगी।
वास्तु शास्त्र के हिसाब से भी स्वास्तिक का अपना अलग ही अस्तित्व है। घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर 9 इंच का लंबा और चौड़ा सिंदूर या रोली से बना स्वास्तिक घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।
घर की उत्तर या पूर्व दिशा में बने स्वास्तिक का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उस घर में कभी भी नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं कर सकतीं तथा घर में चारों ओर शुभता का ही वास होता है।
स्वास्तिक बहुत ही स्पष्ट 90 डिग्री का होना चाहिए।
जैसा की चित्र में हर कोण स्पष्ट होना चाहिए तभी उसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकेगा।
स्वास्तिक का इतिहास लगभग 15000 वर्ष पुराना है। सिंधु घाटी की सभ्यता में कुछ चिन्ह स्वास्तिक के रूप में पाए गए हैं।मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी इस चिन्ह के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जैन धर्म, बौद्ध धर्म में भी इसे मान्यता प्राप्त हुई। बुद्द भगवान के हृदय, पैर तथा हथेली पर भी या चिन्ह अंकित है। अशोक के शिलालेखों, रामायण, पुराण, महाभारत आदि में भी स्वास्तिक का उल्लेख मिलता है। एक अध्ययन के अनुसार जर्मनी में भी स्वास्तिक का उपयोग किया गया है। 1935 में जर्मनी के नाजियों ने स्वास्तिक का प्रयोग किया था जिसका विरोध किया गया और इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
15000 वर्ष पुराना स्वास्तिक का इतिहास है। स्वास्तिक को सौभाग्य से जोड़कर माना जाता है। यूक्रेन के नेशनल म्यूजियम में कई तरह के स्वास्तिक चिन्ह देखे जा सकते हैं। आयरलैंड में कई स्थानों व गुफाओं में इसके चिन्ह देखे जा सकते हैं।
एडोल्फ हिटलर ने इसे अपना राष्ट्रीय निशान बनाया था। अमेरिका ने अपनी मैगजीन का नाम स्वास्तिक रखा। नेपाल में हेरंब, मिस्र में एक्टोन तथा वर्मा में पियेन्नों के नाम से पूजा जाता है। संक्षेप में सभी धर्मों तथा देशों में इसका महत्व परिलक्षित होता है। किंतु हिंदू धर्म ने इसको सर्वाधिक मान्यता प्रदान की है। इसकी रचना इस प्रकार की है कि वह एक घड़ी की तरह चलती है जो सूर्य की ओर इंगित करती है।
यदि स्वास्तिक के चारों ओर गोला खींच दिया जाए तो वह सूर्य का प्रतीक हो जाता है। उसकी चारों भुजाएं चारों देवो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक हैं। यह हमारे पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं। यह चारों आश्रम तथा ब्रह्मा के चार मुख का प्रतीक हैं।
यदि यह कहा जाए कि स्वास्तिक के बिना हिंदू धर्म का कोई अस्तित्व नहीं, यह हिंदू धर्म की आत्मा तथा उसका मेरुदंड है तो इसमें कोई संदेह नहीं।
आशा शरद चतुर्वेदी, लखनऊ