1. पनता- दुपट्टा
लड़के के लिये लाल या गुलाबी 2 1/2 मी० का दुपट्टा बनाया जाता है जिसे पनता कहते है जो बिनैगी के समय लड़के के कंधे पर डाला जाता है। यही दुपट्टा (पनता) बारात के साथ जाता है जिसे वहाँ विवाह के समय वर वधु दोनो की गांठ जोड़ी जाती है। यह मान्यता है कि इस दुपट्टे को हमेशा संभाल कर रखा जाता है।
2. घोड़ी पूजन के लिये 1/2 किग्रा चने की दाल भीगी हुई व गुड़ की ढेली को सूप में रख कर पहले रोली चावल से घोड़ी की पूजा करते है। तब चने की दाल व गुड़ की ढेली, 2 फर आटे के घोड़ी को खिलाये जाते है।घोड़ी वाले को नेग के रूप मे रूपये दिये जाते है।
आटे के मले हुए 6 फर बनाये जाते है। लड़के के तिलक होने के बाद घोड़ी पर बैठने से पहले दरवाजे पर (दहरी पर) लड़के की माँ चार फर बारी बारी से लड़के के ऊपर उसार कर चारो दिशाओ में एक एक फर फेकती है। इसके साथ साथ चारो बार शर्बत का ग्लास लड़के के ऊपर उसार कर हर बार अपने मुँह में डालती है।
प्रक्रिया
पहले एक फर लड़के के ऊपर उसारा और एक दिशा (पूर्व) की ओर फेक दिया। फिर लड़के के ऊपर शर्बत उसारा और एक घूट अपने मुँह में डाल लिया। इस तरह चारो दिशाओ में (पूर्व, पश्चिम,उत्तर, दक्षिण) चार बार माँ द्वारा ये प्रकिया होती है।
माता पूजना
घोड़ी पर बैठ कर लड़का व साथ में घर परिवार के लोग गाजे बाजे के साथ माता के मन्दिर जाते है। लड़के की माँ लड़के का दुपट्टा पकड़कर (एक घर) पीछे चलती है। लड़के की माँ भी अनिवार्य रूप से स्वंय भी सगुनसात घाट (साड़ी) पहनाती है। माता पर पूजन के वक्त चढ़ाने को लाल या गुलाबी घाट (साड़ी), सुहाग का सामान माँ को पहनाते है। साथ ही फल मिठाई चढ़ाते है। रोली, चावल, फूल से विधि विधान से लड़के से माता की पूजा करवाते है। पूजा की थाली में रोली, चावल, फूल, नारियल, फल, मिठाई, माँ का घाट (साड़ी, ब्लाऊज) सुहाग का सामान होता है। मंदिर से पूजा करके लौटके आने पर लड़का अपने घर नहीं आता है अपितु पड़ोस में किसी के यहाँ रूकाया जाता है अर्थात उसके बाद लड़का विवाह करके ही घर में बहू को लेकर ही प्रवेश करता है।