खोरिया अथवा महिला संगीत

खोरिया अथवा महिला संगीत

खोरिया है या महिला संगीत? इस विषय पर हमारे समाज में अलग धारणा ये है और बहनों में तरह-तरह की भ्रांतियाँ हैं। जिसे स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है।

खोरिया

लड़के के विवाह में पहले समय में और कुछ स्थानो पर आज भी खोरिया करने का प्रचलन है। अतः संक्षेप में स्पष्ट करना जरूरी है।

पहले हमारे परिवार में (दादी वगैरह के जमाने में) बारात जाने के बाद घर में खोरिया किया जाता था। वास्तव में खोरिया (नाच गाना) का कार्यक्रम केवल परिवार, नाते रिश्तेदार व समाज की बहू बेटियों का ही होता था और अपने शहर में केवल अपने समाज (चौबो) के यहाँ ही बुलावा दिया जाता था। कि फलाँ दिन बहू बेटियो का खोरिया का बुलावा (बुलउआ) है। नाच गाने के बाद सबका खाना-पीना हो जाता था जिसे खोरिया कहा जाता था।

महिला- संगीत

परन्तु आज के परिवेश में समाज के हर रूप में परिवर्तन आने के साथ-साथ कार्यकमो का रूप बदला भी है और इसे एक आयोजन के रूप में कार्यकम को प्रस्तुत करने की चेष्टा की जाती है। इसलिये आज महिला संगीत को एक भव्य आयोजन के रूप में मनाया जाता है। और इसके निमंत्रण अपनी जात बिरादरी, घर परिवार, समाज के अतिरिक्त बाहरी मित्रगण एंव व्योहारी (स्त्री-पुरूष-बच्चे) सभी को आमंत्रित किया जाता है। इस आयोजन को विधि विस्तार से सुन्दर से सुन्दर तैयार कर के किया जाता है। साथ ही खाने पीने का आयोजन भी सुचारू रूप से होता है।

साथ ही कार्यक्रम के अन्तर्गत घर की कोई जिम्मेदार महिला द्वारा आई हुई हर महिला अतिथि को भेट स्वरूप माँगर के पैकिट, 1-1 बर्तन (जो भी हो) और 4-4 लड्डू दिए जाते है। ये हमारे समाज में माँगरो का शगुन माना जाता है। ये तो हुई विवेचना- महिला संगीत की।

अब आगे बढ़ते हुये नये परिवेश के अनुसार महिला संगीत की तैयारियों की तरफ बढ़े।