हरछठ मैया की पूजा करते समय निम्न कहानियाँ कहने की परम्परा है।
पहली कहानी
एक राजा थे। उनके सात रानी, सात बहुएँ व सात बेटे थे। उन्होंने ताल (तालाब) खुदवाया। ताल में पानी नहीं आया। उन्होंने बहुत प्रयत्न करके देखे, कि इसमें पानी क्यों नहीं आया। उन्होंने पंच से पूछी तो वे बोले कि इसमें नाती की बलि चढ़ाओ तो पानी आएगा। सास बड़ी बहू के पास गई कि तुमसे एक चीज माँग रहे हैं। वह बोली बोलिए, तो सास ने कहा कि अपना लड़का हमें दे दो तो उसकी बलि चढ़ा दें। तो बहू ने इंकार कर दिया कि लड़का खिला-पिला पाल-पोस कर बड़ा किया है, यह कैसे दे दें।
इस तरह दूसरी, तीसरी छः बहुओं ने इसी तरह कहा कि सब करेंगे पर लड़का नहीं देंगे। उन्होंने सोची कि सातवीं के पास जाएं कि न जायें। इसी असमंजस में सातवीं बहू के पास गईं। सातवीं बहु से बोली कि कुछ माँगने आए हैं। बहू बोली सब आपका है जो कुछ चाहे मांग लें। सास बोली अपना लड़का दे दो उसकी बलि दें तो ताल में पानी आ जाए।
बहू ने आँखों में आँसू भर हँसकर लड़का दे दिया। अब ताल में इतना पानी आ गया कि वो भर गया। तब भादों की हर-छठ आयी। महिलाएँ ताल पर नहाने गईं। सब जा रही थीं तो ससुर सातवीं बहू से बोले कि तुम भी बेटा चली जाओ। बहू ने सोचा हमारे लड़का तो है नहीं, पर ससुर कह रहे हैं तो उनके आदेश से ताल नहाने चली जाऊँ। सब महिलाएँ ताल में नहा रही थीं तो एक छोटा सा बालक खेलते हुए गोदी में आ गया। सबने कहा कि यह किसका लड़का है। सब ने इनकार किया तो बहू ने देखा कि लड़का उसका था। उसने बालक को आँचल में उठा लिया। घर आकर हर-छठ मैया की पूजा बहुत श्रद्धा के साथ की।
दूसरी कहानी
एक बहू थी। उसके एक बालक था। वह हर भादों माह की छठ को हर छठ मैया का व्रत करती थी। एक दिन वह अपने बालक को दूध पिला कर व सुलाकर काम से बाहर गई। वह पड़ोस की महिला से बता गई कि इसका (मेरे बालक का) ध्यान रखना। दुर्भाग्यवश उस महिला के कोई संतान नहीं थी। उस महिला के मन में पाप आ गया और उसने बालक की बलि चढ़ाकर भट्टी में उस बालक को डाल दिया और ऊपर से बंद कर दिया।
इधर महिला जब लौटी तो अपने बालक को ना पाकर विलाप करने लगी। हर जगह अपने बालक को ढूंढने लगी। तभी किसी अन्य से उस पड़ोसी महिला की करतूत का पता चला तो वह पूरे गाँव व पंचों के साथ उस महिला के घर गई।
बहु ने रोते हुए व हर-छठ मैया को याद करते हुए उस भट्टी का ढक्कन खोला तो उसके अचरज का ठिकाना ना रहा। उसका बालक यथावत भट्टी में हंसता हुआ खेल रहा था। झट से बहू ने अपने बालक को आँचल में भर लिया व दुलार करने लगी।
वह तुरंत ही घर गई और पूरे श्रद्धा भाव से हर-छठ मैया की पूजा-अर्चना की। विनती की कि हे हर-छठ मैया, जिस तरह तुमने मेरे बालक की रक्षा की, उसी तरह सबके बालकों की रक्षा करना।
हरछठ मैया से प्रार्थना
हरछठ मैया का पूजन करने के उपरांत उपरोक्त कथानुसार “हरछठ मैया” से श्रद्धापूर्वक प्रार्थना की जाती है कि-
“ हे हरछठ मैया ! जिस प्रकार आपने इन बालकों की रक्षा की है, उसी प्रकार सदैव हमारे बालकों व सभी के बालकों की रक्षा करना। व सभी पर कृपा बनाए रखना।”
– कुमकुम चतुर्वेदी: एक कोशिश