चरण स्पर्श का महत्व-
चरण स्पर्श करना हमारे देश की एक अत्यंत प्राचीन परम्परा है।हमारे पूर्वजों तथा विद्वानों की एक विशेष उपलब्धि यह है कि उन्होंने वर्षो पूर्व अनेकों परंपराओं के पीछे छिपे रहस्य को समझ लिया था, वह भी तब जब विज्ञान ने इतनी उन्नति नहीं की थी। हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे सूक्ष्म रहस्यों को समझ कर उनके महत्व को हमें ऐसे समझाया कि वो हमारे संस्कार बनते चले गए।
स्वयं से आयु में बड़े लोगों, अपने गुरुजनों तथा माता-पिता के चरण स्पर्श करना ऐसा ही एक संस्कार है। व्यक्ति स्वयं से आयु में अथवा रिश्ते में बड़े लोगों के चरण-स्पर्श करता है और बदले में बड़े बुज़ुर्ग के मुँह से उसके लिए आशीर्वाद, सदवचन निकलते हैं।
चरण स्पर्श के प्रभाव व लाभ-
यह एक सिद्ध तथ्य है कि कोई व्यक्ति कितना भी कलुषित स्वभाव का हो, चरण-स्पर्श करने पर उसके मुख से सदवचन ही निकलते हैं। चरण-स्पर्श का वैज्ञानिक कारण यह है कि मानव शरीर स्वयं एक चुंबक के समान है। चुंबक विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में चुंबकीय तत्व मौजूद हैं। यदि मनुष्य खड़ा हो तो उसके सिर और धड़ को उत्तरी ध्रुव तथा पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना जाता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा सिर से पैर की ओर प्रवाहित होती है। दक्षिणी ध्रुव अर्थात पैरों पर इस ऊर्जा की मात्रा एकत्रित हो जाती है। पैरों से हाथों द्वारा इसी ऊर्जा को ग्रहण करने की प्रक्रिया को हम चरण स्पर्श कहते हैं। जब हम किसी के पैर छूते हैं तो उसके आभा मंडल की कुछ सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में आ जाती है।
चरण स्पर्श का मनोवैज्ञानिक कारण है कि यह परम्परा व्यक्ति के अहंकार को कम करके एक पारस्परिक प्रेम, आदर और सम्मान के वातावरण को जन्म देती है। जिनका हम चरण- स्पर्श करते हैं उन पर तुरंत इसका मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है तथा उनके हृदय से प्रेम और आशीर्वाद की भावनाएं निकलती हैं जो हमें फलीभूत होती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि बड़े बुजुर्गों को नियमित प्रणाम करने से आयु, विद्या, यश तथा बल की वृद्धि होती है।
चरण स्पर्श से जुड़े कुछ तथ्य-
चरण-स्पर्श से संबंधित कुछ पौराणिक जानकारी भी है। हम सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में अर्जुन को अपने ही गुरु द्रोणाचार्य के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा था। इस परिस्थिति में भी उसने सर्वप्रथम एक तीर अपने गुरु के चरणों में छोड़ कर प्रतीकात्मक रूप से उन्हें चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
महाभारत का ही एक अन्य प्रसंग है कि यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि एक व्यक्ति महान व शक्तिशाली कैसे बन सकता है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – “यदि कोई अपने माता – पिता, गुरुजनों तथा अपने बुजुर्गों के नियमित तथा समर्पित भाव से, आदर सहित चरण-स्पर्श करे तो ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप जीवन में सफल होता है।
चरण स्पर्श के नियम-
माना जाता है कि सभी प्राणी ईश्वर का रूप हैं, सभी वंदनीय हैं परंतु शास्त्रों में चरण स्पर्श करने के लिए कुछ नियम वर्णित हैं–
- चरण स्पर्श उसी व्यक्ति को करें जो उसके योग्य हो। सदाचारी, सच्चरित्र, सद्गुणी तथा श्रद्धेय हो।
- पाखंडी, पतित, व्यभिचारी, कृतघ्न व्यक्ति के चरण स्पर्श न करें ।
- चरण स्पर्श करते समय घुटने स्पर्श न करें। यह त्रुटिपूर्ण माना जाता है।
- एक हाथ से नहीं, दोनों हाथों से चरण स्पर्श करें।
- रजस्वला तथा प्रसूतिका स्त्री के चरण स्पर्श न करें।
- शाष्टांग प्रणाम केवल अपने इष्ट तथा गुरु को करें ।
- स्त्रियाँ शाष्टांग होकर किसी को प्रणाम न करें।
- मन्त्रोच्चारण करते हुए ब्राह्मण के चरण स्पर्श न करें।
- भोजन करते समय चरण स्पर्श न करें।
- प्रमाद से चरण स्पर्श न करें।
चरण स्पर्श कैसे करें-
चरण स्पर्श करते समय घुटने नहीं छूने चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि इसमें दानवों का वास होता है। बल्कि चरण स्पर्श में हमेशा दोनो पैर के अंगूठे का स्पर्श करें, जिससे उस व्यक्ति के गुण, ओज व सदाचार आप में आ जायें।
अंत में, मैं यही निवेदन करती हूँ कि आइये, हम सब चरण-स्पर्श के असीम और अतुलनीय लाभों को ध्यान में रखते हुए इस संस्कार का पालन करें तथा अपने बड़े बुजुर्गों से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा व आशीष प्राप्त करते रहें जो कि जीवन में कवच की भाँति हमारी रक्षा करते हैं।
लेखिका- श्रीमती उर्मिला मिश्रा, पत्नी स्वर्गीय श्री रोहित कुमार मिश्रा, मैनपुरी /लखनऊ