सकट चौथ/ सकट चतुर्थी व्रत
सकट चतुर्थी व्रत अथवा वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी कहते है। ये व्रत रूपी पर्व सभी संकटो को हरता है। ये विशेष रूप से गणेश जी की पूजा का पर्व है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की चौथ को “सकट चौथ” के नाम से मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद उत्तर दिशा की ओर मुँह करके “गणेश जी” को नदी में 21 बार या तो घर में एक बार जल देना चाहिये। गणेश जी का व्रत संतान की लम्बी आयु हेतु किया जाता है।
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात गणेश जी भगवान का व्रत, पूजन व ध्यान करते है। शाम के समय सफेद तिल के लडडू बनाये जाते है। व बथुआ उबाल कर उसकी छोटी-छोटी गोलिया बनाई जाती है। सकट चौथ के पावन दिन हर स्त्री विशेष रूप से लड़के की माँ अपने पुत्र की कुशलता एंव लम्बी आयु की कामना करते हुए इस व्रत को बड़ी श्रद्धापूर्वक पूर्ण करती है। वैसे तो ये पूजा हर माँ अपनी संतान के कुशल क्षेम के लिये करती है। पुत्र की माँ के लिये ये व्रत रखना अनिवार्य बताया गया है।
पूजन विधि- देर शाम अर्थात सूर्यास्त के बाद ही इसकी पूजा विधि-विधान से की जाती है। पहले दिन में सफेद तिल के लड्डू बनाये जाते है। तथा बथुआ उबाल कर छोटी-छोटी गोलियाँ बनाई जाती है। सूर्य अस्त होने के बाद सर्व प्रथम शुद्ध स्थान पर हल्दी से लीपकर चौक लगाते है। इसके बाद चौकी/पटा रखकर लाल कपड़ा बिछाकर श्री गणेश जी महाराज को श्रद्धापूर्वक स्थापित करे। पूजा के समय गणेश जी के सामने दिया जलाते है। फिर तिल के 7 लडडू व बथुए की 7 गोलियां गणेश जी को चढ़ाते है। इसके बाद रोली, चावल, फल, धूप, दीप से विधि पूर्वक गणेश जी की पूजा करते है। रात्री में चन्द्रोदय यानि चन्द्रमा निकलने पर पूजा का थाल सजाकर यानि चन्द्रमा दिखाई देने पर सबसे पहले चन्द्रमा को अर्ग देते है। फिर रोली, चावल, फूल चढ़ाकर पूजा करते है। तथा एक तिल का लडडू व एक बथुए की गोली चन्द्र देवता को चढ़ाते है व दीपक से आरती करते है। आरती का जलता हुआ दिया चन्द्रमा के सामने खुले स्थान पर ही रख दिया जाता है। उसके पश्चात ही घर की स्त्री घर के बालक, लड़कों व बड़ो को रोली चावल का तिलक लगाकर प्रसाद के रूप में एक-एक लडडू देती है। उसके बाद ही व्रत खोला जाता है। व्रत खोलने के लिये व्रती महिला स्वयं प्रसाद का लडडू व गणेश जी पर चढ़ायी बथुये की गोली भोजन के साथ ग्रहण करती है। चन्द्रमा को अर्ग देते समय बोला जाता है-
झरना झरे, कमल दल फूलें
दूब लहलई चमर ढुरे
गणेश जी महराज
सब की इच्छा पूरी करे।
अथवा
तिल तिल दियरा, तिल तिल बाती
तिल तिल कटे सकट की राती
चन्द्रमा बढ़े अर्ग दे।।
तिल के लडडू बनाने की विधि
सामग्री- सफेद तिल, खोया, थोड़ी महीन कटी हुई मेवा, काजू किशमिश, छोटी इलाइची पिसी, बूरा/ पिसी चीनी
विधि- सबसे पहले सफेद तिल को बीनकर साफ कर लें। अब पहले कढ़ाई गर्म होने पर कपड़े की सहायता से तिल को थोड़ा-थोड़ा करके भून लें अर्थात चटकने तक भूनकर उतार ले। अब खोये को हल्की आँच पर गुलाबी होने तक भूने। मेवा को एकदम महीन-महीन काट लें। चाहे तो तिल को हल्का दरदरा पीस लें। छोटी इलायची को भी पीस लें। इस सब के बाद सफ़ेद तिल हल्के दरदरे पिसे हुए, भूना हुआ खोया, महीन कटी मेवा, पिसा इलाइची इस सब सामग्री को मिला ले और इस सामग्री के अनुपात से अन्दाज से बूरा डाल कर पूरा मिश्रण दोनो हाथो की हथेलियो से अच्छी तरह मिलाले व अपनी इच्छानुसार लडडू बाँध ले व गणेश जी महाराज का भोग लगाये।