शुभ अवसरों पर समय समय पर लगाए जाने वाले विभिन्न चौकों का विवरण

  1. चतुर्वेदी समाज में पाए जाने वाले विभिन्न चौको का विवरण – परिचय
  2. सतिया
  3. घुँघरू का चौक
  4. दुहेरा चौक
  5. थापन
  6. चाक बाँस
  7. थापो
  8. अमला
  9. मुण्डन की छठी
  10. उसका चौक
  11. नासुत का चौक
  12. सूर्य ,चंद्र व गंगा -जमुना

विवरण-

1. परिचय- चतुर्वेदी समाज के विभिन्न अवसरों पर,लगाए जाने वाले पर्वो पर चौक लगाने की प्रथा हैजो विधि के अनुसार दिए जा रहे है —-

विधि- सर्व प्रथम गोबर या हल्दी से जहाँ पर चौक लगाना हो वहाँ पर लीप दिया जाता है।उसके बाद आटे से ये अत्याए बनाई जाती है।घुँघरू लगाने के लिए अपनी उंगलियों की मुट्ठी से आटा लेने के बाद बन्द कर लें, जिनसे आटा निकले ।इसीलिए मुट्ठी आधी खुली होनी चाहिए और फिर मुट्ठी जमीन पर धीरे धीरे आटा गिराते हुए चलानी चाहिए। चौक की लकीरें लगाने के लिए चुटकी में आटा भरिये औऱ चुटकी जितनी कस कर बधी होगी उतनी ही पतली लकीर बनेगी।

2. सतिया — सतिया हमारे यहाँ हर एक मांगलिक कार्यो में लगाया जाता है।यह छोटे – मोटे पूजन,गौर पूजाते समय तथा लड़के के जन्म पर दीवार पर गोबर से बनाया जाता है।दीवार पर लड़के के जन्म की छठी व मुण्डन की छठी पर यही बनाया जाता है।

3. घुँघरू का चौक– यह चौक सत्यनारायण की कथा से लेकर प्रत्येक मांगलिक अवसरों पर लगाया जाता है।

4. दोहरा घुँघरू का चौक– शादी व उन अवसरो पर यह चौक लगाया जाता है जहाँ पति व पत्नी जोड़े से पूजा करते हैं।

5. थापन– जब बहू चूल्हा छूती है तब चौके (रसोई) की दीवार पर थापन बनाई जाती हैऔर कुछ परिवारों में बहू के आने पर अमला नही बनता है उनके यहाँ पर भी थापन रख कर पूजा करने का विधान है।

6. चाक – बाँस–(मास) — बहू के प्रथम बार ससुराल में आने पर “राज स्वला “” होने पर इसी आलेखन को दीवार पर अथवा कपड़े पर बना करदिवारवपर चिपका कर बहू से पूजा कराई जाती है। इसमें 14 रुपये (सिक्के) ऐपन से चिपकाए जाते है।पूजन के बाद यह कपड़ा घर की लड़कियों को दिया जाता है।।

7. थापो — यह बहू के चौक के अवसर पर बनाया जाता है और बहू से पूजा करवाई जाती है।इसमें भी 14 सिक्के चिपकाए जाते है।।

8. अमला– लड़के के विवाह के समय घर के दरवाजे पर अमला बनाया जाता है।कलश की मुँ डरी द्वार के दोनों ओर हाथी के साथ बनानी चाहिए।वर -वधु सबसे पहले ऐसी की पूजा करते है।।

अमला

9. मुण्डन की छठी ओर चौक– लड़के के मुण्डन से एक दिन पूर्व छठी की पूजबकी जाती है।यह छथि भी घर के बुजुर्ग पूजते है या प्रायः बालक की माँ द्वारा पूजा की जाती है।अपना घर होने पर अथवा घर की दीवार पर बनाते है। दीवार पर बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आधा “पक्खा” एक तरफ व दूसरा “पक्खा ” एक तरफ लेते है।छठी हमेशा डेढ़ “पक्खा ” की बनाई जाती है,जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।छथि की माएँ 32 की होती है। नाग “कजर” के बनाये जाते है तथा ऐपन से सारी छठी बनाई जाती है।दीवार पर बनानी हो तो रंगों से भी चित्र बना सकते है।

10. नासुत का चौक — उपर्युक्त आलेखनों के अतिरिक्त लड़की के विवाह में लड़की के मण्डप में भी एक विशेष प्रकार का चौक लगाया जाता है ।उसमें मंडप के नीचे विभिन्न प्रकार के ” कोष ” बनाते हुए मण्डप को सजा देते है।ऐसे ” नासुत चौक ” कहते है।

11. सूर्य ,चंद्र व गंगा – जमुना– यह सभीआलेखन के साथ बनाये जाते है। केवल घुँघरू के चौक व सतिया के साथ नही बनाये जाते है।

12. औली चौक — औली का मतलब होता है देहरी।सबसे पहले यह कमरे की देहरी से शुरू होता है।देहरी के ऊपर घुँघरू का चौक लगाया जाता है जैसा कि चित्र में बताया गया है।फिर घुँघरू के चौक के ठीक नीचे से यह चौक लगा दिया जाता है।लड़के के विवाह पर नारियल व लड़की के विवाह पर पान बनाया जाता है। बाकी का चौक एक जैसा ही बनता है।यह चौक माँगर के अतिरिक्त “चैती अष्टमी ” घर मे लगाकर इसका पूजन कर फिर देवी अष्टमी की पूजा को मंदिर में जाते है।।

लेख: आशा चतुर्वेदी, लखनऊ