शिवरात्रि के पश्चात

होली पूजन अथवा होलिका दहन

फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष के उपरान्त पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है तथा अलग-अलग तरह से होलिका की पूजा की जाती है।

पूजन विधि- पूरे दिन खोये की गुजिया व अन्य पकवान बनाने के बाद होली पूजन की तैयारी की जाती है।

होली पूजन के लिये 8 गुझिया, 8 छोटी पूड़ी, 8 अमेठी चढ़ाने के लिये बनाई जाती है। हम लोगो में होली जलने से पहले ही यानि कच्ची होली की पूजा की जाती है। पूजा के थाल में एक लोटे में जल, रोली, चावल, पुष्प डालकर व थाली में पूजा का सामान 8 गुजिया, 8 पूड़ी, 8 अमेठी, रोली, चावल, फूल लेकर जाते है। होलिका माता को सबसे पहले जल चढाये फिर रोली, चावल, फूल चढ़कार पूजा का सामान गुजिया, पूड़ी, अमेठी चढ़ाये। इसमे गोबर के बने गोल-गोल उपले की माला बनाकर (या बनी हुई) चढ़ाई जाती है। होलिका माता की 7 बार परिक्रमा करते है। और हर बार परिकमा पूरी करने पर माता को थोड़ा जल चढ़ाते है। पूजा करके आने पर घर के लोगो को रोली व गुलाल का तिलक लगाया जाता है। व प्रसाद के रूप में घर में बनी गुजिया खिलाई जाती है। होली जलने पर घर के मर्द गन्ना, गेहूं की बाली व गोला-नारियल भूनते है। घर में लड़का, नाती होने पर उसे होरी की झर अर्थात जलती हुई होली की झलक दिखाई जाती हैं और झर दिखाई गोला-पेढा बाटा जाता है। ये बालक की पहली होली होती है।