विस्तार से – यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ
बालक या लड़के का जनेऊ 5 वर्ष से 12-14 वर्ष तक की उम्र में किया जाता है। अपितु बालक लड़के के विवाह से पूर्व उसका जनेऊ किया जाता है या घर परिवार में किसी विवाह आयोजन के पूर्व जनेऊ किया जा सकता है या किया जाता है। लड़के का जनेऊ 2 रूपो में किया जाता है। एक स्वयं विवाह से पूर्व या घर में विवाह आदि के पूर्व छोटे रूप में किया जाता है। जनेऊ का दूसरा रूप है किसी भी बालक या बालको का जनेऊ पूरे विधि विधान से रीति रिवाजो के अनुसार 4-5 दिन का जनेऊ करना। जो कि एक विवाह समारोह की तरह ही परम्परागत तरीके से किया जाता है जिसमें विवाह की तरह ही सारे कार्यकम किए जाते हैं। जैसे कि-
- पहले दिन गुरुवार रविवार अच्छे दिन, दिन धरा जाता है जिसमे ब्याह की तरह ही पवित्र स्थान पर चौक लगा कर एक कलश जल भरें, जिसमें रोली, चावल, सुपाड़ी, सिक्का, फूल रखे। उस पर एक सकोरी चावल भर कर रखे जिसमें आटे के 4 गोले बनाकर रखें व पाँचवे आटे का गोला अण्डाकार थोड़ा बड़ा बनाये जिसमें गौरा जी का चेहरा बनायें व सकोरी में रखकर चीर उड़ाये। उसके बाद रोली, चावल, फूल, बताशे से गौरा जी की पूजा करे। ये तो हुआ दिन घरना।
- दूसरे दिन बालक को दिन में हल्दी चढ़ाई जाती है और शाम के समय बालक और उसकी माँ के माँगर होते हैं। मॉँगर में एक पैकिट सुहाग का सामान दो सुहागिनें माँगर की चोटी करेगी। माँ व लड़के की चोटी होती है। चोटी करने चाली महिला को 1-1 पैकिट में 1 1/2 पाव चावल, बताशे, रूपये, 1-1 रूमाल या ब्लाऊज पीस दिया जाता है। माँगर के बॉटने वाले सामान में 1-1 पैकिट सुहाग का सामान, 1-1 बर्तन व लड्डू दिये जाते हैं।
- तीसरे दिन बालक को तेल चढ़ता है (गुरू जी द्वारा बताये अनुसार) तेल में 8 सकोरी में 4-4 पूड़ी व 1-1 रूपया रखना है।
- चौथे दिन- दिन में भातिये यानी मायके पक्ष के लोग भात चढ़ाते हैं यानि पहनाते हैं। भात विवाह की तरह ही चढ़ाया जाता है। पहले बालक की माँ को। भातियों के लिये पाँउड़ा बिछाया जाता है जिस पर 7 पूड़ी (कच्ची) व सकोरी रखी जाती है। जिसपर चलकर भातीये आते हैं। उस वक्त भात गाया जाता है। पहले भाई (मामा) बहन को घाट पहनाता है। साड़ी पहनाता है व बहनोई को तिलक करके कपड़े देता है। तब बालक को व परिवार के अन्य सदस्यो को देते है। उसके बाद बहन, भाई, भतीजो, सब भतईयों को तिलक करके 1-1 गोला रूपये व कपड़ा देती है। गोले भाइयो को (नागा) जो आये न हों सब के नाम के दिये जाते है।
शाम को घुड़चड़ी(बिनैगी) होती है। ब्याह की तरह ही पहले घुड़चड़ी के तिलक होते है। उसके बाद लड़के की माँ घोड़े पर बैठने से पहले लड़के के ऊपर से आटे के 4 फर उसार कर चारो दिशाओ में फेंकती है तब उसी तरह शर्बत उसार कर खुद पीती है।
अब लड़का घोड़े पर बैठकर बाजे गाजे के साथ माता के मन्दिर में पूजा करने जाता है। माता पर चढ़ाने को 1 घाट(साड़ी) ब्लाउज़, सुहाग का सामान, 1 गोला, फूल, मिठाई,रोली, चावल आदि लेते है।
- पाँचवे दिन सुबह के समय जनेऊ होता है।
पहले मातृ पूजन होता है।-
पहले ही दीवाल पर 16 की मॉयें रखकर (कपड़े पर बनी) लगाई जाती है। मातृ पूजन के लिये घर का बड़ा बुजुर्ग व्यक्ति ही बैठता है।
पूजन में 1 पाव घी, सूखा, आंवला, मुनक्का, सुपाड़ी, हल्दी की गाठे, रोली कलावा, कपूर, पान, फूल, बताशे, रूई माचिस इत्यादि। साथ ही आम की लकड़ी, आम के पत्ते, देशी घी, कलश, 25 सकोरी, 25 दोना, थाली मंत्र पढ़ने के लिये, 5 जोड़ा लौग, 5 इलायची, गुड़ बताशे फल इसके बाद 7 और बौरुवा यानि 7 लड़के खिलाये जाते है। उसके बाद जनेऊ होता है। जनेऊ की प्रक्रिया उसी प्रकार है। शाम को पार्टी (भोजन का) आयोजन किया जाता है। जिनके लिए 7 ग्लास व 10-10 रू० रखे जाते हैं। इस तरह ‘औरुआ-बौरुआ’ खिलाये जाते हैं। उसके बाद जनेऊ होता है।
जनेऊ-यज्ञोपवीत संस्कार
- लड़के को कुर्ता, पजामा, नया रूमाल
- एक मर्दाना धोती
- गुरू जी के पाँच कपड़े-घोती, कुर्ता, पजामा,बनियान, रूमाल, अंगोछा।
- 1 मी0 सफेद कपड़ा नवग्रह के लिये व 1/2 किग्रा चावल
- एक भगोनी, चमचा, प्लेट, 50 ग्राम दही
भीख जनेऊ की
अहूजी में-
- 1/2 किग्रा चने की दाल
- 1 किग्रा चावल
- 1 पैकेट मूंग बरी
- 1 पैकिट पापड़
- 5 बर्तन
- 1 घाट, पेटीकोट, ब्लाऊज, रूमाल, बिंदी
- 1 पैकेट सुहाग का सामान-चूड़ी, बिन्दी, आलता, मेहन्दी, सिन्दूर, बिछिया
- 1 किग्रा चीनी
- 7 गुजिया पगी हुई (चाश्नी की)
हर भीख पर 10-10 रू0 रखे जाते है।
विशेष-
जनेऊ से पहले औरुआ-बौरूआ के लिये 7 ग्लास और हर ग्लास में 10-10 रूपये रखे जाते है। अब 7 औरूआ-बौरूआ यानि 7 लड़के जलेबी या मीठे से खिलाये जाते है।
भीख माँ डालती है। उसके बाद परिवार के लोग भीख डालते है।