विवाह का दिन धरना
विवाह के लिए दिन गुरूवार यानी बृहस्पतिवार या रविवार को ही धरा जाता है, दिन धरने से एक दिन पहले 100/200 ग्राम धुली उरद की दाल व 2 से ढाई किलो (इच्छानुसार) धुली मूंग की दाल भिगो दें।
सामान
एक कलश, सकोरी, चावल, उरद की दाल (पिसी हुई), मूंग की दाल (पिसी हुई), गुड़ , लाल कपड़ा, चीर, एक सूप, पटा, एैपन और आटे की बनी गौरा जी।
खाने में झोर, उर्द, भात/घोई।
विधि
दिन धरने के लिए घर की महिला सुबह नहा-धोकर स्वच्छ जगह या मन्दिर में या घर के मन्दिर के पास हल्दी से लेप कर चौक लगाकर पटा रखे, नया कपड़ा बिछाकर एक छोटा कलश जल भरकर उसमें रोली, चावल, हल्दी, फूल डालकर रखे, अब कलश पर सकोरी या कटोरी चावल भरकर रखे। अब मले हुए ऑटे के चार लड्डू बनाकर चावलों पर रखे, और उस पर एक बड़ा आटे का गोला अण्डाकार बनाकर रखे जिस पर गौर का चेहरा बनायें व कलश की सकोरी पर रखे, आटे के चार लड्डुओं पर रखें उनको लाल चीर उढाये, अब रोली, चावल, फूल, बताशे से गौरा जी की पूजा करें। पूरे ब्याह भर इन्हीं गौरा जी की पूजा होती है। बहू आने पर इन्हीं गौरा जी को एक महीने तेल पूजती है। गौरा पूजने के बाद सूप में सतिया लगाकर पाँच या सात सुहागिन स्त्रियाँ उडद दाल की जोड़े से यानी दो-दो मुगौड़ी रखें, फिर सूप में इन्हें चीर उढाकर रोली, चावल, बताशे से पूजा करें, इसके बाद सूप तथा अन्य थालियों में मूंग की बडियाँ लगायें व मंगलगीत गायें, इस दिन देवी गीत व बन्ने गाये जाते हैं। इस दिन शगुन में चने-बरी का झोर उर्द/धोई भात बनता है।
घर आई महिलाओं कों चार-चार लड्डू या बताशें दिये जाते हैं। दिन धरने के दिन से ही अपने घर परिवार का “चूली चूल्हें” का न्यौता माना जाता है। इस दिन से ही यह ब्याह का घर माना जाता है।
घर में शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं तैयारियों के साथ। इस दिन के बाद से घर-परिवार का कोई भी व्यक्ति किसी अन्य के यहाँ अमांगलिक कार्य में सम्मिलित नहीं होना चाहिए।
माना ये भी जाता है कि विवाह हेतु लड़का/कन्या को विवाह तक घर से बाहर निकलना टालना चाहिए।