लड़के का विवाह संपन्न हो जाने के पश्चात कुछ पर्वों का करना अनिवार्य है जो निम्नलिखित हैं। –
1. दसत्ता– यह पर्व विवाह के दसवें दिन मनाया जाता है।उसमें वधु से 10 पूड़ी , 10 पेढ़े तथा पूरा सुहाग का सामान व साड़ी ब्लाऊज रख कर छिड़का जाता है। बहू की माँग , बिंदी ,मेहदी करके उसे नई चूड़ियाँ पहनाई जाती हैतथा मायके की चुनरी पहनाकर व चौक लगाकर यह कार्य करवाया जाता है।
2. मसौन्न– विवाह के एक माह पश्चात 30 पूड़ी , 30 लड्डू या पेढ़े तथा धोती ,ब्लाउज ,सुहाग का सामान उपरोक्त विधि से यह कार्य किया जाता है।इसमें “पठौनी ” की साड़ी दोनों पर्वो पर मायके से आती है।
3. अनंत चतुर्दशी– यह पर्व कुछ के यहाँ मनाया जाता है और कुछ के यह नही।इसमे भी 10 पुए व सुहाग का सामान छिड़का जाता है।
4. हरियाली तीज– इसमे हरतालिका की तरह निर्जला व्रत किया जाता है।एक तरह से ये उद्ध्यापन है।इसमें भी मायके से पठौ नी आती हैतथा पूरी छाबरिया छिड़की जाती है।
5. टिपनी की आठें — भाद माह की दोनों अष्टमी पर्व की होती है पहले गुड़,गेहू व पूरा सुहाग का सामान धोती ,ब्लाउज रख कर मंशा जाता है।
6. दूसरी अष्टमी — इस अष्टमी को भी पेढ़े रख कर सारा सामान दिया जाता है।
7. हरतालिका तीज– इस व्रत को भी वधु निर्जल व्रत रख कर करती है।इस दिन पूजा -अर्चना व अर्ग देने के पश्चात संकल्प के साथ वधु पूरी छाबरिया–सदी ,ब्लाउज,सुहाग का पूरा समान,16 पीस मिठाई ,फल ,विशेष रूप से शगुन का नारियल इत्यादि पूरा समान छिड़कती है।मायके से “पठानी”आती है।
8. संक्रांति– सबसे पहले संक्रांति गुड़ से उठी जाती है।16 जगह गुड़ रख कर बाकी जगह छाबरिया का सामान छिड़क जाता है।
9. विवाह की वर्षगाठ (विवाह की पहली वर्षगाठ)— वर्ष भर यह 8 पर्व करने के पश्चात विवाह की वर्षगाठ पर भी छाबरिया छिड़की जाती है।जिसमे साड़ी, ब्लाउज, सुहाग का सामान,फल ,मिठाई, सभी कुछ श्रद्धानुसार रखा जाता है।इसमें भी बहू के मायके से पठौ नी आती है।बहू मेहदी ,महावर लगाकर ये पर्व सम्पन्न करती है। इस तरह पूरा वर्ष इन पर्वो के सहारे इतनी शीघ्रता से व्यतीत हो जाता है किवधू को ससुराल में आकर मायके की याद न सताये। इन पर्वो के पीछे छिपी भावना का यही उद्देश्य है।।
लेख: आशा चतुर्वेदी, लखनऊ