रतवारे पूजन विधि

यह पूजन दोपहर के पहले किया जाता है। इसमें पूर्व या पश्चिम की दीवाल पर सफेद खड़िया या चूना पोत कर साफ़ किया जाता है। यदि किराये का मकान है तो सफेद सवा मीटर कपड़े पर ‘नाग’ रखे जाते है। इसमे दो नाग छबरया के रखे जाते है।

एक नाग सात (7) फेर का व दूसरा नौ (9) फेर का होता है। दूसरे रतवारे के दिन एक नाग नौ (9) फेर का व दूसरा नाग ग्यारह (11) फेर का रखा जाता है। इनके नीचे जमीन पर इकहरा चौक लगाया जाता है। चावल भिगोकर व पीस कर व हल्दी मिलाये।ऐपन से नाग बनते है। प्रत्येक नाग पर एक पान नुकीला यानी पान की नोक ऊपर की तरफ व डंडी नीचे की ओर हो। ऐपन से चिपकाये जाते है। और 1-1 सिक्का नाग के ऊपर मुँह पर ऐपन से लगाते है। पहले रतवारे में एक पत्तल में पुड़वारे यानि 10 पूड़ी, 10 बरुला (बेसन) दस गूजा रख कर एक दोना में खीर, दूसरी पत्तल में 8 पूड़ी 8 गूजा (खोये के) 8 सुहाल बेसन के रख कर एक दोने में चावल की खीर।

एक पत्तल में तीन प्रकार के झोर चनेबरी का झोर, कतरो का झोर, जूने का झोर, बरा, उर्द भात, धोई, खीर व आम रखे जाते है। दूसरी पत्तल में नौ गूज़े खोया के मैदा की पापडी फीकी चना लाई भूनी हुई रखी जाती है। नौ पूडी, नौ पुआ इस पत्तल को नागो के नीचे रखा जाता है।

दो पत्तल में खीर, 7 रोटी, तीनों प्रकार का झोर – चने बारी का झोर, कतरों का झोर, जूने का झोर, उर्द, भात रखा जाता है। 7 फेर के नागों के नीचे 8 पूड़ी वाली पत्तल तथा 9 फेर के नागो के नीचे 10 पूड़ी वाली पत्तल रखी जाती है। इसके पश्चात चौक पर जच्चा, बच्चा यानि बालक लेकर बैठती है। अव नागो की रोली, अक्षत मिठाई से पूजा करती है। इसके बाद तीनो पत्तल में रखा सामान थोड़ा थोड़ा दोनो नागो पर चढ़ाया जाता है। इसके बाद घर का बड़ा सोने की अँगूठी या गिन्नी से बच्चे को गोद में लेकर खीर चटाता है। घरवारियो में इसी दिन अनुप्राशन होता है अन्य दिन नहीं।

दूसरे रतवारे के दिन यानि यदि पहले रतवारे क्वार के पड़े है। तो दूसरे रतवारे आषाढ़ वाले माने जायेगें। और यदि आषाड़ वाले पहले है तो दूसरे रतवारे क्वार वाले माने जायेगे। दूसरे रतवारे वाले दिन नाग 9 फेर व 11 फेर के रखे जायेगे परन्तु 9 फेर वाले नाग के नीचे पत्तल पर रखा सामान 10-10 होगा। 11 फेर के नाग के नीचे रखा सामान 12-12 होगा। एक एक सामान बढ़ता का कहलाता हैं बाकी सामाग्री व पूजन उसी प्रकार होगा। चौक पर बैठते समय सिया दोहा गाया जाता है। अलग अलग गोत्र में अलग अलग नियम है। जिनके यहाँ रतवारे होते है, उनके यहाँ बालक का मुण्डन व मुण्डन की छठी घूमधाम से नहीं होती है। अपितु जिनके यहाँ रतवारे नहीं होते है, उनके यहाँ बालक का मुण्डन और मुण्डन की छठी बड़े विधि विधान से की जाती है। दोनो ही रतवारे में घर में ही द्-योरानी जिठानी मिलकर खाती है। अधिक सामान वाली पत्तल देवर जेठ को दी जाती है। कम वाली पत्तत घर के बुजुर्ग या रिश्तेदारो को दी जाती है। इसके बाद घर की बेटियां आरता करती है। आमंत्रित महिलाये न्योछावर करती है। आंमत्रित महिलाओं को पूड़ी व बताशा दिया जाता है तदुपरान्त भोजन होता है। पाठको में दो नाग 5 फेर के, दो नाग 7 फेर के, एक नाग 9 फेर के रखे जाते है। इन लोगो में आषाढ़ सप्तमी (उतरते) में ही रतवारे किये जाते है। पाँच नागो के नीचे पाँच पत्तल कमशः छः, आठ और दस-दस सामान रखकर उसी प्रकार पूजा की जाती है। एक सकरी पतली उसी प्रकार सजाई जाती है। चौक पर बैठते समय व पूजन के समय ‘गूड़ी’ गीत गाए जाते हैं।और सीआ दोहा गाया जाता है। जिन परिवारों में अब रतवारे नहीं कराए जाते हैं, वहाँ अब बहू की बच्चा बालक होने पर डिलिवरी रूम से बाहर निकलते ही ‘नाग देवता’ के नाम से उसारा करके रुपए उठाकर रख दिए जाते हैं। जो मुण्डन की छठी की वक़्त नाग देवता के सामने रखे जाते हैं।