आगौनी के दिन प्रातःकाल मुहूर्त अनुसार मण्डप गाड़ा जाता है। उसमें घर के बड़े-बुजुर्ग व्यक्ति पहले पूजा करते है। तब सात जन मिलकर “जग खंभ” गाड़ते है। लकड़ी की दिवाली या दिया रखने की जगह बनी होती है। उसमे दिया जलाकर रखा जाता है। इसमें कुश भी बाँधा जाता है। कुश न हो तो कलावे से भी बाँधा जाता है। चार-चार खड़पड़ी सभी उपस्थित लोगो को दी जाती है। मंडप के गीत गाये जाते है। बारात आने पर सर्वप्रथम दो भतइया बारात आने की खबर देते है। उन्हे पूड़ी बताशा खिलाया जाता है। उन्हे 1-1 दुपटटा व रूपये दिये जाते है। इसके बाद डेरा में नाश्ता भेजा जाता है।
भात- भात के कार्यकम में सबसे पहले मंडप के नीचे भांतियों के स्वागत हेतु पाउड़े की साड़ी बिछाई जाती है। जिस पर शुरू से मंडप तक 7 कच्ची पूडी 1-1 सिक्का और उस पर कच्चे सकोरे रखे जाते है। जिन पर पाव रखकर मामा मण्डप तक आता है। कन्या का मामा चौक पर भात पहनाता है। सबसे पहले मामा अपनी बहन को शगुन की घाट पहनाता है व बहनोई को वस्त्र आदि प्रदान करता है।
इसके बाद लड़की को साड़ी जेवर इत्यादि देने के बाद घर के अन्य सदस्यों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र आदि भेंट देता है। इसके पश्चात बहन अपने भाई भर्तीजो को प्रति सदस्य 1-1 गोला तिलक करके देती है व वस्त्र एवं रुपये उपहार स्वरूप देती है। गोला व रू0 बढ़ते का दिया जाता है। अर्थात अनुपस्थित भाई भतीजे के नाम का भी गोला दिया जाता है। साथ ही बहनों, भाभियों इत्यादि को भी उपहार स्वरूप वस्त्र व रू० दिये जाते है।
आग्यौनि कार्यक्रम- बारात आने से पहले लड़की के मां बाप “सींधा” छिड़कते है। उस टंकी में जो समधी के यहाँ जाती है। उसमें आटा, गुड़, बेसन, बरी, चावल, उर्द, घी, मसाले, नमक, मिर्च, गिन्दौरा या मीठे मट्ठे 20 ये गौरिहत की टंकी में सभी सामाग्री रखी जाती है। गौरिहत की टंकी में एक साड़ी एक घाट ब्लाऊज सहित रूपये रखे जाते है। 5 गिन्दौरा व मीठे माठे भी रखे जाते है। आगौनी के वक्त चौक पर यानि दरवाजे पर दी जाने वाली सामग्री रख दी जाती है।
इसके साथ ही काका मामा की बाल्टी जिसमें 20-20 लडडू,1-1 तौलिया जो गोद डालने आता है, उसे दी जाती है। यह सभी सामाग्री रख कर लड़की के माता पिता छिड़कते है। द्वार पर दो बड़े कलश व दो लोटा रखे जाते है। सीधा छिड़कते वक्त कन्या दान गाया जाता है। सीआ दोहा गाया जाता है। बारात आने पर बारातियो का स्वागत हाथ जोड़कर “पालागन-पालागन” कहते हुये अभिवादन करते हुये किया जाता है।
पूजन- आगौनी में सबसे पहले कलश पूजन दूल्हा करता है। उसी वक्त दो दुपटटे समधी देते है। चौक पर लड़के के न्यौछावर किया जाता है। जिसे ससुराल वाले यानि लड़की पक्ष के लोग करते है। उसके बाद लड़के को तिलक किया जाता है। जिसे घराती करते है। उसके बाद घर का बुजुर्ग या लड़की का पिता लड़के को सब सामान दरवाजे पर (देने वाला) प्रदान करता है। जिसमें परम्परा के अनुसार (सामर्थ्य के अनुसार) घड़ी, अँगूठी, पहनने के कपड़े (सूट) इत्यादि होते है। घर का बुजुर्ग लड़के को साफा बाँधता है। ससुराल पक्ष के लोग (बुजुर्ग) ढरा में दो साड़ी, ब्लाउज, सिन्दौरी सिन्दौरा, 50 सुपाड़ी, 50 पान, रोली, मेहंदी, कलावा लेकर आते है व लड़की के हाथ में देते हैं व एक गिन्नी रखते है।
मठिया, डोरी, चौकी, पोत का पुंज ये सभी जेवर के साथ ढ़रा में आते है। काका, मामा गोद डालते है तो वही लड़की को साड़ी जेवर पहनाते है। ससुर गोद डालते है। उसके बाद काका मामा गोद डालते है। काका मामा को बाल्टी दी जाती है। भावरे फेरो के वक्त लड़के को बुलाया जाता है। लड़के के आने तक सिल पर बैठ कर लड़की बरई के पूतना पर अक्षत चावल छोड़ती है। चौक पर सिल रखी जाती है।
गुड़ की ढेली वही रखी जाती है लड़के के आने पर गुड़ की कली सरका दी जाती है। लड़के के आने पर जो भी कन्यादान करता है, बैठता है। लड़की का मामा सिल समेत बिटिया को चौक पर ले जाते है। मामा सिल पर रूपये रखते है। लड़की की माँ रू0 उठा लेती है। माता पिता कन्यादान करते है। लड़के को मण्डप में लाने लिये उपरोक्त विधि अनुसार पाऊड़े बिछाये जाते है। और लड़की की माँ ऊँगली पकड़ कर दामाद को लाती है। इस वक्त कन्यादान गाया जाता है।
कन्यादान- हो रामा कन्या जाई
रामा तब जगत सजायो
हो रामा पुरखो के नाम लिये जाते है।
कन्यादान के वक्त लड़की की माँ लड़की के पूरे हाथ पीले करती है।लड़की दामाद के हाथों को मिलाकर लड़की की माँ उस पर धार डालती है। पिता हाथ में पान जनेऊ रखकर कुश डाल पकड़ेगे और गुरू शाखोच्चार पढ़ते है। गुरुओं को एक मान्य की व दो गुरुओं को शाखोच्चार बोलने की तौलिया दी जाती है। उसके बाद भावरे (फेरे) पड़ती है।
उसमें भइया धान व खीले लड़की के लिये देता है। सात भावरो में हर भाँवरे पर कटोरा या बर्तन (इच्छानुसार) में शक्कर भरकर तौलिया के साथ हर बार भाई देता है। इस तरह सात फेरो में सात कटोरे हो जाते है। विवाह के बाद पान जनेऊ वर को दिया जाता है।
लड़का भाँवरों के बाद डेरो में नहीं जाता हैं अपितु उस दिन वह कन्या के घर पर ही रहता है। दूसरे दिन शाखोच्चार होता है। उसके बाद कुँवर कलेवा व पहैना होता है। पहेने के लिए लड़की डेरो में जाती है। वही ससुराल की साड़ी व जेवर पहनती है। वही बहू (कन्या) को नाश्ता पानी (कलेवा) कराया जाता है। तब भाई बहन की विदा कराने जाता है। तो ससुराल पक्ष से भाई को विदा में उपहार स्वरूप कपड़े(सूट) व तिलक करके शगुन का गोला दिया जाता है।
परन्तु वर्तमान समय में समयाभाव के कारण अब शाखोच्चार एवं पहैना की रीत कम होती जा रही है। पर फिर भी बहू (कन्या) के लिये शाखोच्चार का सामान, पहने का सामान व भाई की विदा नियमानुसार दी जाती है। ये सामान सब यथावत जाता है। कन्या पक्ष के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति एवं पिता बारातियों को ससम्मान चौक पर मण्डप में बुलाकर हर एक व्यक्ति को तिलक करके सम्मानित करते है। व पहराउन देते है। दोनो पक्ष के गुरू विनती गाते है व गऊदान करवाते हैं।
इसके बाद गठजोड़ा होता है। जो ढरा में चुनरी आती है वही कन्या पहनती है (चलन के अनुसार चुनरी या घाट) ससुर बताशे की गोद डालते है। बिछिया पहले समधी के पहनाये जाते है। बाद में मायके की घाट व बिछिया पहनाते है। चलते समय दूल्हा गूँथ छुड़ाता है। ‘गूँथ’ छुड़ाई या खुलाई लड़के को कन्या की माँ चाँदी का गिलास बूरा या शक्कर भर कर देती है व तिलक करती है। और बाकी परिवार के लोग भी दूल्हे को तिलक करते जाते है। व शगुन में रु0 या कुछ वस्तु उपहार में देते है। नाइन-बारिन को दो धोती समधी देते हैं, सब काम विवाह का पूर्ण होने के पश्चात सत्यनारायण की घर परिवार खानदान के साथ कथा की जाती है व श्रद्धापूर्वक प्रसाद वितरित किया जाता है।